About Bengal School

 Bengal School.



 In the middle of the 18th century, foreign people in India came to the East India Company officers, employees and businessmen. Indian art was almost dead during the British regime. For art education, in 18 a.d., Macaulay opened art schools in Madras, Kolkata, Mumbai and Lahore with the objective of training Indians according to finger education system. English European artists were appointed as directors. From 18 to 96 A.D., E. B. Howell became the director of Kolkata Kala Vidyalaya from Madras Kala Vidyalaya.

Avindra Nath Tagore

Havel gave birth to innovative ideology in the Indian art sector in collaboration with Ravindra Nath Tagore. He said it would be meaningless to run behind the mirage and half-renewal of the first true art of Indians.His traditional art ajanta, Ellora, Rajput Mughal and Hill miniature paintings were studied as ideals and depicted contemporary subjects, which can naturally reveal the truth of Indian life philosophy with naturalness in their art. The post-hero artists are influenced by mortal beauty. Inspired by Havel's ideas, Ravindra Nath Tagore conducted a thorough study of the importance of the rhythmic tau colours of traditional rules lines and the salicered features of their different styles.In 1902, Japanese artists came directly to Taiwan, Calcutta. Ravindra Nath adopted the gentle colour association of the voice system of China and Japan. The blending of Indian banjo water styles developed a new kalam stream which we call bengal style or resurgence style.Bengal school's major religious mythological social themes that began to spread throughout the country through various forms of art-painting sculpture graphic etcing. In the police investigation, he was appointed as the principal of The Kolkata Kala Vidyalaya of Ravindra Nath in place of Havel. Praveen Nath has been appointed as the principal of Nandal Bose Devi, Prasad Rai Chaudhary, etc., which began to propagate the resurgence style.

In 1907 A.D., EV Havel Gagendranath Tagore established the Indian Society of Oriental Art. Most of the British and five Indians were the operators of this institution. In 1980, the exhibition of paintings of Raveena Tagore Nandal Bose Venkatappa, Gaganendranath Tagore, Shailendra Nath Dey was encouraged by scholars like Percy Brown Sarjapur Road etc.

In Bengal, it was a distinguished style birth-giver, Avanendra Nath, from the movement. Indian traditional art janata Rajput Mughal and hill miniature paintings had a fine and wavy line shade light from pastel art highlighting from camera China Japan has a major feature of this style, rendering the melodious flow of soft colours from technology. The sculptures of the paintings are derived from sculpture graphic and other elements of the Manu Chrome colours of the eching.Thus, the main feature of the genre was that it was jointly accepted in the field of art. After the 2013,000-100-year-on-day, the police had made a case of a new state of 2017. Nandal has been with the ideals of Mahatma Gandhi. Ravindra Nath Tagore is the credit of the Indian modern painter for realizing the pure Indian life philosophy. From 1928 to 1940 Indranath gave the true object a form of surrealism. Yamini Rai created a new art Yamini Rai art style of simplification of paintings on the villager.He emphasized a lot of stations, so his paintings should be free from Western influence. After the Second World War, a troupe of artists from Raza, Aja to Jahussain, etc., was established in Mumbai.

In Kolkata, Tagore Gopal Ghosh Santosh Sen Sumo, etc., adopted modern art leaves to protest the resurgence style, which later included Ramkinkar, Avnish Jain, Sunil Madhav Sen, etc. The Crafts Chakra in Delhi, the Madras Progressive Artists ' Division in Madras, the Progressive Artists ' Division in Kashmir were established. These divisions drew the attention of artists, art lovers and art students to art and did important work.

बंगाल स्कूल।

 18 वीं शताब्दी के मध्य भारत में विदेशी लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी, कर्मचारी व व्यापारी गण आए। ब्रिटिश शासन काल में भारतीय कला मृतप्राय रही। कला की शिक्षा के लिए 18 सो 34 ईस्वी में मैकाले ने भारतीयों को उंगली शिक्षा प्रणाली के अनुसार प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से मद्रास, कोलकाता, मुंबई व लाहौर में कला विद्यालय खोले गए। इंग्लिश यूरोपियन कलाकारों को निर्देशक के रूप में नियुक्त की गई। 18 से 96 ईसवी में ई बी हॉवेल मद्रास कला विद्यालय से बदलकर कोलकाता कला विद्यालय के निर्देशक बने।

हवेल ने रविंद्र नाथ टैगोर के सहयोग से भारतीय कला क्षेत्र में नवीन विचारधारा का जन्म दिया।उन्होंने कहा भारतीयों के फर्स्ट सत्य कला की मृगतृष्णा व आधा नवीकरण के पीछे दौड़ना निरर्थक होगा।अपनी परंपरागत कला अजंता, एलोरा, राजपूत मुगल तथा पहाड़ी लघु चित्र शैली को आदर्श मानकर उनका अध्ययन करके समकालीन विषयों का चित्रण किया जिससे उनकी कला में स्वाभाविक ता के साथ भारतीय जीवन दर्शन के सत्य अद्भुत प्रकट कर सकती है।पश्चात हीरो के कलाकारों होती एवं नश्वर सौंदर्य से प्रभावित है। हवेल के विचारों से प्रेरणा पाकर रविंद्र नाथ टैगोर ने परंपरागत नियमों रेखाओं की लयात्मक ताऊ रंगों की महत्ता तथा उनकी विभिन्न शैलियों की प्रमुख विशेषताओं का गहन अध्ययन किया।1902 में जापानी कलाकार ही सीधा ताइवान कलकत्ता आए थे।रविंद्र नाथ ने चीन व जापान एआधार की वास पद्धति की कोमल रंग संगती को अपनाया।भारतीय बाजा पानी शैलियों के सम्मिश्रण से एक नवीन कलाम धारा विकसित हुई जिसे हम बंगाल शैली या पुनरुत्थान शैली कहते हैं।बंगाल स्कूल के प्रमुख धार्मिक पौराणिक सामाजिक विषय थे जो कला के विभिन्न रूप भाग चित्रकला मूर्तिकला ग्राफिक इचिंग के माध्यम से पूरे देश में फैलने लगे।पुलिस जांच में हवेल के स्थान पर रविंद्र नाथ के कोलकाता कला विद्यालय के प्राचार्य पद पर नियुक्त हुए। प्रवीण नाथ ने शिशु में नंदलाल बोस देवी, प्रसाद राय चौधरी इत्यादि प्राचार्य पद पर नियुक्त हुए हैं जिससे पुनरुत्थान शैली का काफी प्रचार प्रसार शुरू हुआ।

1907 ईस्वी में ईवी हवेल गगनेंद्रनाथ टैगोर ने इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट का स्थापना की। इस संस्था के संचालक प्लॉट खींचना अधिकांश अंग्रेज तथा पांच भारतीय थे।1980 में रवीना टैगोर नंदलाल बोस वेंकटप्पा, गगनेंद्रनाथ टैगोर, शैलेंद्र नाथ डे के चित्रों का प्रदर्शनी को पर्सी ब्राउन सरजापुर रोड इत्यादि विद्वानों ने प्रोत्साहित किया।

बंगाल में इसने आंदोलन से विशिष्ट शैली के जन्मदाता अवनींद्र नाथ थे। भारतीय परंपरागत कला जनता राजपूत मुगल तथा पहाड़ी लघु चित्रों में बारीक तथा लहरदार रेखा पेस्टल कला से छाया प्रकाश था कैमरा से हाइलाइटिंग चीन जापान के पास तकनीक से कोमल रंगों के मधुर प्रवाह का प्रतिपादन इस शैली की प्रमुख विशेषता है।चित्रों के सामान मूर्तिकला ग्राफिक तथा इचिंग के मनु क्रोम रंगों की प्रमुखता अन्य तत्वों से प्राप्त की जाती है।

अतः शैली के प्रमुख विशेषता यह रही कि कला के क्षेत्र में संयुक्त रूप से स्वीकार किया गया।देश के आजाद होने के बाद इधर कला के क्षेत्र में स्वतंत्र चिंतन और राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ। नंदलाल महात्मा गांधी के आदर्शों के साथ हुए हैं।विशुद्ध भारतीय जीवन दर्शन को साकार करने का सर्वप्रथम भारतीय आधुनिक चित्रकार का श्रेय रविंद्र नाथ टैगोर को है। 1928 से 1940 इंद्रनाथ ने यथार्थ वस्तु को अतियथार्थ का रूप प्रदान किया।यामिनी राय ने ग्रामीण पर चित्रों की सरलीकरण की एक नवीन कला यामिनी राय कला शैली बनाई।उन्होंने बहुत ही स्टेशन पर बल दिया अतः उनके चित्र पाश्चात्य प्रभाव से मुक्त रहें। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मुंबई के रजा, आजा से जाओहुसैन आदि कलाकारों की मंडली स्थापित हुई।

कोलकाता में टैगोर गोपाल घोष परितोष सेन सुमो आदि कलाकारों ने पुनरुत्थान शैली के विरोध में आधुनिक कला पत्तियों को अपनाया जिसमें बाद में रामकिंकर ,अवनीश जैन, सुनील माधव सेन आदि शामिल हुए।दिल्ली में शिल्प चक्र ,मद्रास में मद्रास प्रगतिशील कलाकार मंडल, कश्मीर में प्रगतिशील कलाकार मंडल स्थापित हुए।इन मंडलों ने कलाकारों कला प्रेमियों तथा कला के विद्यार्थियों का ध्यान कला की ओर आकृष्ट कर महत्वपूर्ण कार्य किया।

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1 comments:

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its
admin
November 30, 2020 at 5:52 PM ×

excellent knowledge

Congrats bro its you got PERTAMAX...! hehehehe...
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