Gandhar style
During the reign of Kanishk, Mahayana paid more attention to the sculpture and in this era many statues of Mercury and Bodhisattva were created. There is a multiplicity of Buddha statue in Gandhar style. In this style, 50,000 sculptures are made of brown red stone and black slate stone.
All sculptures of the Gandhar style have a combination of awakened scenes in hand toes, eyes, folded embellishments of textiles that complete this art. The Buddha birth statue of this style is particularly noteworthy in the Patna Museum.
गंधार शैली।
गंधार शैली का विकास कुषाण काल में लगभग 50 ईसवी से 300 ईसवी में पश्चिमी पंजाब की पेशावर में हुआ। मौर्य काल के पश्चात अपनों का प्रभाव पेशावर, अफगानिस्तान तथा गंधार प्रदेशों पर हुआ और कुछ समय बाद हुई प्रांत उनके अधिकार में आ गए इस काल से पूर्व यूनानी भारत में रहने लगे थे जो मूर्ति कला का अच्छा ज्ञान रखते थे।धीरे-धीरे भारतीय तथा यूनानी मूर्ति कारों में मेल बढ़ता गया और इस युग में दोनों के मिलाप का फल गंधार मूर्ति शैली के रूप में प्रकट हुआ। यह सैनी गंधार से मथुरा होती हुई अमरावती तक पहुंच गई।
कनिष्क के शासन काल में महायान ने मूर्ति कला की ओर अधिक ध्यान दिया करो इसी युग में बुध और बोधिसत्व की अनेक मूर्तियों का निर्माण हुआ। गंधार शैली में बुद्ध प्रतिमा की बहुलता है। इस शैली में 50,000 मूर्तियां भूरे लाल रंग के पत्थर तथा काले स्लेट पत्थर की बनाई गई है।
गंधार शैली की सभी मूर्तियों में हाथ पैर की उंगलियां, आंखें, वस्त्र की सिलवट अलंकरण में जागृत दृश्यों का संयोजन किया गया है जो इस कला को पूर्ण करता है।पटना संग्रहालय में इस शैली के बुद्ध जन्म की मूर्ति विशेष प्रकार से उल्लेखनीय है।
Mathura
Mathura in Uttar Pradesh was a powerful centre of Jain crafts of the Kushan period. The emperor of Emperor Kanishak was spread from the forest river to Pataliputra. The odd government secondary was located in Mathura and the farmers ' regional rule was available in the result of the white-spotted red-spotted stones from the mines of Sikari, Bharatpur, etc., near Agra. So the statues of Mathura are of red stone. Along with the Mathura style, Bharhut and Saatchi saheli were also running, resulting in the clinging of mathura sculptures.
Sculptures based on the president, the president, the sports scene, the makeup and the Buddha subjects have been found. The scenes of pet birds are inscribed with the makeup and love scenes of the elderly women of Mathura. The remains of many statues of Kushan kings have been found which do not have the influence of the Gandhar style. But in Mathura, Gandhar is the nature of idols or influenced by that style. Emperor Kanishk's steep sculpture has a special significance from the point of view with a long coat, pajama noting.
A woman statue of the secret Mathura or a standing woman who used to serve as a prasdhika. Its face is beautifully happy and serious. There is a pitari in the left hand. And the makeup in the right hand is standing for charity.
The main division of the Buddha statue standing in Mathura is in Saint compassion and spiritual sentiments. There is also a slight smile on the companion mouth. Mercury God appears to stand stability like a burning lamp.
The Mathura Museum has some stone sculptures of the safe Mathura, which is of the first century, send an old man in a scene in place of an enclosure in Mathura with a hair on his head, heavy idols, pointed beard.
In addition, a number of sculptures have been found at Bhita in Allahabad district and Shrarati in Kaushambi Gorakhpur district, etc., which belong to the deities of Hinduism and Buddhism and are made up of a mixture of clay and sand and it appears to have been widely circulated in north India. In South India, the remains of plant stupa and Srikrishna temples have been found in amravati Nagarjunkonda, etc. Mathura art is very laudable as an example of Indian painting and sculpture.
मथुरा
उत्तर प्रदेश का मथुरा कुषाण काल के जैन शिल्प का सशक्त केंद्र था। सम्राट कनिष्क का सम्राट वन नदी से पाटलिपुत्र तक फैला हुआ था। विषम राजकीय माध्यमिक मथुरा में स्थित था और आगरा के पास सिकरी, भरतपुर आदि की खदानों से सफेद देखे गए लाल देखे गए पत्थरों के परिणाम में किसान क्षेत्रीय शासन को उपलब्ध था। इसलिए मथुरा की प्रतिमाएं लाल पत्थर की हैं।मथुरा शैली के साथ-साथ भरहट और साची सहेली भी चल रही थी, जिसके परिणामस्वरूप मथुरा की मूर्तियां चिपक गईं।
यक्ष, यक्षिणी, क्रीड़ा दृश्य, श्रृंगार तथा बुद्ध विषयों पर आधारित मूर्तियां मिली है। मथुरा के बुजुर्गों महिलाओं के श्रृंगार और प्रेम दृश्यों के साथ पालतू पशु पक्षियों के दृश्य अंकित है। कुशान राजाओं की कई मूर्तियों के अवशेष मिले हैं जिनमें गंधार शैली का प्रभाव नहीं है। परंतु मथुरा में गंधार मूर्तियों की प्रकृति है या उस शैली से प्रभावित है। सम्राट कनिष्क की खड़ी मूर्ति मूर्तिकला दृष्टिकोण से अपना एक विशेष महत्व रखती है जिनमें लंबा कोट, पैजामा उल्लेखनीय है।
गुप्तकालीन मथुरा की या खड़ी नारी मूर्ति जो प्रसाधिका का का कार्य करती थी। इसका मुख सुंदर प्रसन्न तथा गंभीर है। बाएं हाथ में एक पिटारी लिए है। तथा दाएं हाथ में श्रृंगार दान लिए खड़ी है।
मथुरा में खड़ी बुद्ध की मूर्ति का मुख्य मंडल संत करुणा में एवं आध्यात्मिक भावनाओं से ओतप्रोत है। साथी मुख पर हल्की सी मुस्कान भी है। बुध भगवान् एक जलते हुए दीपक की भांति स्थिरता पूर्वक खड़े दिखाई पड़ते हैं।
मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित मथुरा के कुछ पत्थर मूर्तियां हैं जो पहली सदी की है मथुरा के एक बाड़े के स्थान पर बने दृश्य में एक बूढ़ा भेजो जिसके सिर पर गुथी हुई बाल ,भारी मूछें, नुकीली दाढ़ी है।
इसके अतिरिक्त इलाहाबाद जिले के भिटा तथा कौशांबी गोरखपुर जिले के श्रावस्ती इत्यादि स्थानों पर अनेक मूर्तियां मिली हैं जो हिंदू और बौद्ध धर्म के देवी-देवताओं की है तथा मिट्टी और बालु की मिश्रण से बनी है और पक्की है इससे यह प्रतीत होता है की समस्त उत्तर भारत में कला का व्यापक रूप प्रसारित था। दक्षिण भारत में अमरावती नागार्जुनकोंडा आदि स्थानों में पौधों के स्तूप और श्रीकृष्ण के मंदिरों की अवशेष मिले हैं। भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला के उदाहरण के रूप में मथुरा कला बहुत ही प्रशंसनीय है।
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