Mughal Painting style
The rise and fall of Mughal painting runs with the rise and fall of the Mughal Empire. Even when Babar and Himu were artistic lovers, there was not much in this direction during its reign. The obvious reason is that Babar and Himu were embroiled in political problems. After 4 years of Delhi Conquest, Babar died and his son Himu's life was in the fight with Sirsa. Therefore, the real greetings of the Mughal Empire are believed in akbar's reign. This is the era of the beginning of the Mughal style.The Mughal style of Indian painting originated in the court of Emperor Akbar. During jehangir's reign, it reached the culmination of its splendor. During Shah Jahan's reign, the green sketch began to be visible in it and this source of painting died during Aurangzeb's reign, seeing the sum of his developmental rise and downfall within 250 years, the beginning of the British Empire.
Babar Mughal painting.
Babar, the birth-giver of the Mughal Empire, was not just a artistic lover but a lover of high-class literary and painting. The immortal painter of Persia has a very beautiful critique of the paintings of the thism, Babar, in his book Babar Nama in Turkish language. By attacking India, Babar conquered 1526 A.D. and became the Lord of India. Babar was handed over the entire heritage to himu and 1530 in this.
Humayun.
Humayun's life in various streams in the war, in the direction of the master Iranian painter Siraj resident Abdul Sussamad, Mir Syed Ali, Humayun's son Akbar received art education in his childhood. The Indian-style Hindu painters were Jaswant and Baswan. The mirror Akbari shows that in Akbar's court, both Indian and Iranian-style painters worked together. A new art-style war began with the cooperation of Iranian style and Indian style.
Akbar.
After Humayun's death, Akbar sat on the kingdom throne in the short-lived. There were Navratna in Akbar's court. Artists Abdul Rashid and Mir Syed Ali created a sense of harmony in the field of art as per Akbar's interest and policy. The Iranian shapes were painted in Indian colours and realised Akbar's ideologies. These artists immortalized Akbar's fame by introducing his skill and infinite spiritual practice by painting the book ' Glove-Ai-Mir-Hamzan .
In the Aaine Akbari, Abdul Fazal quoted that Akbar was interested in painting from childhood. So he duly practiced painting. An exhibition of paintings was held every week at Akbar's court for proper evaluation of paintings and encouragement of artists. The paintings of Kashmir, Gujarat and Lahore include the works of Irani painter and Hindu Indian painter over the years.
Iranian painters and Indian-style painters worked together and learned and taught each other a lot of mail, generosity and well-being. Thus, the meeting and coordination of the two friends was born of an Indian style which we call the Mughal style. It is an exchange of architecture, music, costumes, Akbar's garb, social life, living, festive festivals, in addition to the harmony and a mixture painting.
मुगल कला शैली
मुगलकालीन चित्रकला का उत्थान और पतन मुगल साम्राज्य के उत्थान और पतन के साथ चलता है। बाबर और हिमायू के कलाप्रेमी होने पर भी इस दिशा में इसकी शासनकाल में बहुत कुछ ना हो सका। इसका स्पष्ट कारण है बाबर और हिमायू राजनीतिक समस्याओं में ही उलझे रहे गए।दिल्ली विजय के 4 साल बाद ही बाबर की मृत्यु हो गई और उसके पुत्र हिमायू का जीवन सिरसा से लड़ने में ही बीता। इसलिए मुगल साम्राज्य का वास्तविक प्रणाम हम अकबर के शासन काल से ही मानते हैं। यही मुगल शैली के प्रारंभ का युग है।भारतीय चित्रकला की मुगल शैली सम्राट अकबर के दरबार में ही उत्पन्न हुई।जहांगीर के शासनकाल में यह अपने वैभव की पराकाष्ठा पर पहुंच गए।शाहजहां के शासनकाल में उस में हरा स्केच इन दृष्टिगोचर होने लगा और औरंगजेब के शासनकाल में इसकी मृत्यु हो गई चित्रकला का यह स्रोत 250 साल के भीतर अपने विकास उत्थान और पतन का योग देखकर ब्रिटिश साम्राज्य के प्रारंभ होते होते छिन्न-भिन्न हो गया।
बाबर मुगलकालीन चित्रकला।
मुगल साम्राज्य का जन्मदाता बाबर सिर्फ कलाप्रेमी ही नहीं उच्च श्रेणी का साहित्यिक और चित्रकला का प्रेमी था।फारस की अमर चित्रकार दी ही जात के चित्रों की बड़ी ही सुंदर समालोचना बाबर ने अपनी पुस्तक बाबर नामा में तुर्की भाषा में की है।भारत पर आक्रमण कर बाबर 1526 ईसवी में विजय प्राप्त करके भारत का स्वामी बना। बाबर संपूर्ण विरासत को हिमायू के हाथों सौंप कर 1530 इसी में दिवंगत हुआ।
हुमायूं।
हुमायूं का जीवन युद्ध में बीता विभिन्न धाराओं में पारंगत इरानी चित्रकार सिराज निवासी अब्दुलस्समद, मीर सैयद अली के निर्देश में हुमायूं का पुत्र अकबर ने अपने बाल्यकाल में कला शिक्षा प्राप्त की। भारतीय शैली के हिंदू चित्रकार जसवंत और बसावन थे। आईने अकबरी से मालूम होता है कि अकबर के दरबार में भारतीय और ईरानी दोनों शैली के चित्रकार साथ साथ मिलकर काम करते थे। ईरानी शैली और भारतीय शैली के आपसी सहयोग से एक नवीन कला शैली का युद्ध आरंभ हुआ।
अकबर।
हुमायूं की मृत्यु के पश्चात अकबर अल्पायु में ही राज गद्दी पर बैठा। अकबर के दरबार में नवरत्न थे। कलाकार अब्दुल रशीद और मीर सैयद अली ने अकबर की रूचि और नीति के अनुसार कला के क्षेत्र में सामंजस्य की भावना उत्पन्न किए।ईरानी आकारों को भारतीय रंगों में रंग कर अकबर की विचारधाराओं को साकार कर दिया। इन कलाकारों ने दस्तान-ऐ-मीर-हम्जानामक पुस्तक को चित्रित कर अपनी कुशलता एवं अपरिमित साधना का परिचय देकर अकबर के यश को अमर कर दिया।
आईने अकबरी में अब्दुल फजल ने उद्धृत किया है कि अकबर को बाल्यकाल से हैं चित्रकला में रुचि थी। अतः उन्होंने विधिवत चित्रकला का अभ्यास किया था।चित्रों के समुचित मूल्यांकन एवं कलाकारों के प्रोत्साहन हेतु अकबर के दरबार में प्रति सप्ताह चित्रों का प्रदर्शनी का आयोजन होता था। कश्मीर, गुजरात और लाहौर के चित्र सालों में इरानी चित्रकार तथा हिंदू भारतीय चित्रकार के कार्यों शामिल है।
ईरानी चित्रकार तथा भारतीय शैली के चित्रकारों ने एक साथ काम करते- करते मेल, उदारता और सुरुचि से एक दूसरे से बहुत कुछ सीखा और सिखाया।इस प्रकार दोनों सहेलियों के मिलन और समन्वय से एक भारतीय शैली का जन्म हुआ जिसे हम मुगल शैली कहते हैं। यह सामंजस्य और सा मिश्रण चित्रकला के अलावे स्थापत्य, संगीत, वेशभूषा, अकबर का पहनावा, सामाजिक जीवन, रहन-सहन, उत्सव- त्योहार सभी का आदान-प्रदान है।
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