Jaypur Painting style

Jaipur style. 
Rajsthani Painting style


The more influence of the flourished Mughal art style in the 18th century after local styles from Jaipur is in jaipur style. Sufi Mughal Samraj came first in Jaipur. The Jaipur King was more honoured at the Mughal court. Bihari I married Princess Jodha Bai of my son, Emperor Akbar, from 1562 A.D. Bhagwandas, son of Bihari Mal and his nephew Man Singh had attained an important position in the Mughal army. Akbar built Fatehpur Sikri. Similarly, Sawai Jayasingh built the new capital Jaipur in 1693 A.D. Record a number of paintings on high walls which are influenced by mughal style. The battle of elephants and the paintings of various Sanawariya were mostly imaginary. But these pictures began to have a European impact. Nevertheless, the shape of the Jaipur style continued in its personal way. Under the rule of Maharaja Pratap Singh, Jaipur style reached its peak. Krishna Bhakta Pratap Singh was also a artistic lover.Apart from the pictures of the season, the main inspiration of the Bihari Satsai Granth has initially been a plethora of devotional paintings and later the horned paintings. The pictures of the countenance illustration Sawai Jai Singh and Pratap Singh are in large size. The gentle expressions of the face are painted with a garland of beads in the throat and a vivid picture of the twist of silk fabrics. The effect of rounding through the lines is a spectacle on the face. In the portrait of Govardhan Dhari Krishna, Krishna has raised Govardhan Mountain on the Lord finger as an umbrella. Krishna's main posture is a glasses and his single body is in front position. Around Krishna, cows, gopian, Gwal Bal, etc., are also listening to the rain. With clouds in the sky, the heavenly deity Indra Irawat is going to worship Lord Krishna. This picture is important and famous in picture combinations, speed and emoticon.The second picture is depicted in the middle of the Ras mandal as a symbol of lord Krishna and Radha's doubles pair of soul and god. Four more of them are dancing. Deities are raining gun flowers from the sky. The primacy of black is in this picture and the graphs have also been made from black. Most of the Jaipur style paintings are safe in Jaipur Pothi food. Many styles of Rajasthan have a raag mala depicting but there is a special beauty in the Raag Mala of Jaipur.In this style, the lines are more important than colours. The faces of human shapes are round and proportionate. The meaty postures of the paintings express limitless beauty. Like the Mughal style, bell gotedar ornamentation has been used in the hands. 
Bikaner style. An illustrated manuscript of the same time being after the 17th century is considered in Meghdoot. The time of Raja Karan Singh is an example of the creation of golden paintings influenced by the Mughal-era Jahangir style. The extreme advancement of Bikaner style was at the time of Raja Anoop Singh. The chief painter of Ieshwari was Ali Raza and his son Hasar Raza. The famous Mughal-style painter of aurangzeb's court, Rakudini, was destitute and took refuge in Bikaner and produced beautiful illustrations with the date of God and Rasikpriya.Raju surat and Rajratna from 18 to 51 A.D., there was a special advancement of building art rather than painting. In the early Hindi century, the royal palaces on the basis of Mughal style introduced generosity and full art skills by creating paintings on Hindu themes of Raag Mala and perennial. Which included new elements in the art style of Bikaner which have a vision of rajput style novelty.
Rajsthani Painting style


  जयपुर शैली। जयपुर से ली स्थानीय शैलियों के बाद 18 वीं शताब्दी में फला फूला मुगल कला शैली का अधिक प्रभाव जयपुर शैली में है। सूफी मुगल समराज जयपुर में पहले आया। जयपुर नरेश मुगल दरबार में अधिक सम्मानित हुए। बिहारी मैंने अपनी जेष्ठ पुत्र की राजकुमारी जोधा बाई का विवाह 15 से 62 ईसवी में सम्राट अकबर से कर दिया।बिहारी मल के पुत्र भगवानदास तथा इसकी भतीजे मान सिंह ने मुगल सेना में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया था। अकबर ने फतेहपुर सीकरी का निर्माण कराया। उसी प्रकार सवाई जयसिंह ने 1693 ईसवी में नवीन राजधानी जयपुर का निर्माण कराया। ऊंची दीवारों पर अनेकानेक चित्र अंकित कराए जो मुगल शैली से प्रभावित हैं। हाथियों की लड़ाई तथा विभिन्न सांवरिया के चित्र अधिकतर काल्पनिक थे। परंतु इन चित्रों पर यूरोपीय प्रभाव पड़ने लगा था। फिर भी जयपुर शैली का आकृति निरूपण अपने निजी ढंग पर चलता रहा। महाराजा प्रताप सिंह के शासन में जयपुर शैली अपने चरम उत्कर्ष पर पहुंच गई। कृष्ण भक्त प्रताप सिंह कलाप्रेमी भी थे ।ऋतु के चित्रों के अलावा बिहारी सतसई ग्रंथ की प्रमुख प्रेरणा से आरंभ में भक्ति चित्र और बाद में शृंगारिक चित्र की अधिकता रही है। मुखाकृति चित्रण सवाई जय सिंह तथा प्रताप सिंह के चित्र बड़े आकार में हैं।चेहरे का कोमल भाव गले में मोतियों की माला और रेशमी कपड़ों की मोड़ के सजीव चित्र चित्रित हैं। रेखाओं से गोलाई का प्रभाव एक चश्म चेहरे पर फूटा है। गोवर्धन धारी कृष्ण के चित्र में कृष्ण भगवान उंगली पर गोवर्धन पर्वत को छाता की तरह उठा रखे हैं। कृष्ण की मुख्य मुद्रा एक चश्मा और उनका इकहरा शरीर सामने की स्थिति में है।कृष्ण के चारों ओर गाय, गोपियां, ग्वाल बाल इत्यादि पर्वत के नीचे खड़े भी सुन वर्षा से बच रहे हैं।आकाश में बादलों के साथ स्वर्ग देवता इंद्र इरावत पर भगवान कृष्ण की पूजा करने पधार रहे हैं। चित्र संयोजन, गति से तथा भावांकन दृष्टि से यह चित्र महत्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध है।दूसरी चित्र रास मंडल के मध्य में भगवान कृष्ण और राधा की युगल जोड़ी आत्मा और परमात्मा के प्रतीक रूप में चित्रित हैं। उनकी चार और गोपियां नृत्य कर रही है।आकाश से देवता गन पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं। काली रंग की प्रधानता इस चित्र में है और रेखांकन भी काले रंग से किया गया है। जयपुर शैली के अधिकांश चित्र जयपुर पोथी खाने में सुरक्षित है। राजस्थान के अनेक शैलियां में राग माला चित्रण हुआ है लेकिन जयपुर की राग माला में विशेष सौंदर्य है।इस शैली में रंगों की अपेक्षा रेखाओं का अधिक महत्व है। मानव आकृतियों के चेहरे गोल तथा समानुपातिक है। चित्रों की भावपूर्ण मुद्राएं असीम सौंदर्य को व्यक्त करती है।मुगल शैली की तरह हाथों में बेल गोटेदार अलंकरण का प्रयोग हुआ है। 
  बीकानेर शैली। 17वीं सदी के उपरांत रहा जा रहा इसी समय की एक सचित्र पांडुलिपि मेघदूत में माना जाता है। राजा कर्ण सिंह के समय मुगलकालीन जहांगीर शैली से प्रभावित सुनहरी चित्रों के निर्माण का उदाहरण है। राजा अनूप सिंह के समय बीकानेर शैली की चरम उन्नति हुई। ईश्वरी के मुख्य चित्रकार अली रजा और उसका पुत्र हसर रजा थे। औरंगजेब के दरबार के विख्यात मुगल शैली का चित्रकार रक्नुद्नीन ने निराश्रित होकर बीकानेर की शरण ली थी उसने भगवान और रसिकप्रिया की तिथि युक्त सुंदर दृष्टांत चित्रों का निर्माण किया था।राजू सूरत से और राजारत्न से 18 से 51 ईसवी तक के समय चित्रकला की अपेक्षा भवन निर्माण कला की विशेष उन्नति हुई। हिंदी सदी के आरंभ में मुगल शैली के आधार पर शाही महलों में राग माला एवं बारहमासा के हिंदू विषयों पर चित्रों का निर्माण कर उदारता एवं पूर्ण कला कौशल का परिचय दिया।जिस से बीकानेर की कला शैली में नए तत्वों का समावेश हुआ जिसमें राजपूत शैली की नवीनता का दर्शन होते हैं।
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1 comments:

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Unknown
admin
September 22, 2020 at 9:50 PM ×

Beautiful knowledge

Congrats bro Unknown you got PERTAMAX...! hehehehe...
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