After Buddhist art, Rajasthani painting art began to be developed in Gujarat and Mewar areas around the 15th century. Rajasthani style is based on pure Indian style like paintings of ancient Ajanta and Ellora cave. In Maharaja Uday Deepti Griha, the centenary picture song Govind's pictorial copy prince of Wales Museum, Mumbai, canopy 1604 in the same raag Ragini etc. Under Rajasthani style, Mewar kishangarh, Bikaner, Bundi Koti, Jaipur-Jodhpur and Malwa are local.
Painting of Mewar.
Nathvia Udaipur was the centre of Chittor and canopy, Mewar style. The independent development of Mewar style was prepared in the 17th century by most of the pictorial copies of Vaishnava Bhagwat Purana based on the important deity Krishna, the painter of Udaipur Centre, Sahib, etc., which is in the collection of Jodhpur Maharaj. Some pictures of Bhagavat Purana are also preserved in the National Museum, New Delhi. In this style, Krishna's life is based on the Ramayana by artist Manohar in 1642 A.D. despite the multiplicity of portraiture of Lila.
The best creation of this style is in the Darbari collection of Raag Mala National Museum, New Delhi and Rasikpriya Bikaner. Many pictorial copies of the popular song Govind have been prepared, some of them in the Prince of Wales Museum, Mumbai, some of the pictures of song Govind are also in the collection of Navgarh Sangram Singh. From 1628 to 1652 A.D., pictures based on Sursagar are made in the golden age of Jagat Singh First, which is in the collection of Gopi Krishna Kanodia.
Beautiful colour scheme in Rajasthani style the background uses colour combination of opposing colours, real chemical and mineral colours. The human nose is able to see the display of long and pointed face round and oval fish-shaped eyes and hand postures. The group of trees has been formed in many ways, causing ornamentation from the branches on the leaves. Radha Krishna has been given the form of a model lover girlfriend. The picture of rural life, marriage, dancing, etc., is also impressive in the social picture.
Kishangarh style.
Kishan Singh, son of Udaisingh, was found in 1609 A.D. surrounded by Jaipur, Jodhpur, Ajmer, etc., which was displaced in the name of Kishangarh. Thereafter, he was appointed to the post of Mansabdar in the court of Jehangir, after his son, healthy Jagmal Hari Singh, mental and Raj Singh sat on the throne till 1738 A.D. respectively. After Raj Singh, his son Sawant Singh was seated on the throne in the name of Sawant Singh Sahitya Opus Nagridas. It was the exclusive worshipper of Krishna.
Samat Singh was a skilled painter, poet and writer. Being absorbed in the love pass of Sundari Nagar, Sawant Singh kept his name Nagri Das as the form of Rupvati Bani embattled as Radha in this style picture. Maharaj Sawan Singh is credited with bringing the painting of Nagari das Kishangarh to the flourishing. The skilled painter Naihalalacharind who has created a sharp eye drawn to the back of the Khamjan bird-shaped eye or lotus petals.The arched long and pointed nose climbs upwards along the red limbo. The flow of dynamic gentle fine lines is the introduction of the amazing skills of artists. The gentle fine hairstyle leaves no stone unturned to refine the form. The wonderful love of Radha Krishna has been accompanied by natural scenes by a lover and girlfriend. The picture of the bright moon and stars with yellow is beautifully wonderful.
In the moonlit night, the beautiful tableau of the padika of tala and Kund has been a person who has shown special interest in the moonlight night music seminar, marking the unique scenes of the beloved girlfriend, the ornate pictures of hero heroines, festivals, boating, love and marking of nature are more related to Krishna Lila.
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बौद्ध कला के बाद राजस्थानी चित्र कला का विकास गुजरात और मेवाड़ क्षेत्रों में 15वीं शताब्दी के लगभग होने लगा। राजस्थानी शैली प्राचीन अजंता और एलोरा गुफा के चित्रों की तरह शुद्ध भारतीय शैली पर आधारित है।महाराजा उदय दीप्ति गृह में शताब्दी के चित्र गीत गोविंद की सचित्र प्रति प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम मुंबई, चंदवा में 1604 इसी में चित्रित राग रागिनी इत्यादि संग्रहित है।राजस्थानी शैली के अंतर्गत मेवाड़ किशनगढ़, बीकानेर, बूंदी कोटी, जयपुर- जोधपुर और मलवा स्थानीय आती है।
मेवाड़ की चित्रकला।
नाथद्वारा उदयपुर चित्तौड़ तथा चंदवा, मेवाड़ शैली के केंद्र थे।मेवाड़ शैली का स्वतंत्र विकास 17वीं सदी में हुआ महत्वपूर्ण देवता कृष्ण पर आधारित वैष्णव का भागवत पुराण की अधिकांश सचित्र प्रतियां उदयपुर केंद्र के चित्रकार साहब आदि ने तैयार की थी जो जोधपुर महाराज के संग्रह में है। राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में भी भगवत पुराण की कुछ चित्र सुरक्षित हैं।इस शैली में कृष्ण की जीवन लीला की चित्रांकन की बहुलता के बावजूद 1642 ईस्वी में कलाकार मनोहर द्वारा चित्र रामायण के आधार पर है।
इस शैली की सर्वोत्कृष्ट रचना राग माला राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली तथा रसिकप्रिया बीकानेर की दरबारी संग्रह में है।लोकप्रिय गीत गोविंद के अनेक सचित्र प्रतियां तैयार हुई उनमें से कुछ चित्र प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम मुंबई में है गीत गोविंद के कुछ चित्र नवलगढ़ संग्राम सिंह के संग्रह में भी है। 1628 से 1652 ईस्वी में सूरसागर पर आधारित चित्र जगत सिंह प्रथम के स्वर्णिम युग में बने हैं जो गोपी कृष्ण कनोडिया के संग्रह में है।
राजस्थानी शैली में सुंदर वर्ण योजना पृष्ठभूमि में विरोधी रंगों का रंग संयोजन,वास्तविक रासायनिक तथा खनिज रंगों का प्रयोग किया गया है। मानव की नाक लंबी व नुकीलीचेहरा गोल तथा अंडाकार मछली के आकार वाले नेत्र तथा हस्त मुद्राओं का प्रदर्शन देखने योग्य है। वृक्षों के समूह को अनेक ढंग से बनाए गए हैं जिससे पत्तों पर डालियों से अलंकारिता उत्पन्न हुई है। राधा कृष्ण को ही आदर्श प्रेमी प्रेमिका का रूप प्रदान किया है। सामाजिक चित्र में देहाती जीवन, विवाह, नाच- गान इत्यादि का भी चित्र प्रभावशाली है।
किशनगढ़ शैली।
उदयसिंह के पुत्र किशन सिंह को 1609 ईस्वी में जयपुर, जोधपुर ,अजमेर आदि से घिरी जागीर मिली जो किशनगढ़ के नाम से विस्थापित हुआ। तत्पश्चात वह जहांगीर के दरबार में घुड़सवार ओं का मनसबदार के पद पर नियुक्त हुआ उसके बाद उसका पुत्र सेहतमंद जगमल हरि सिंह रूप से मानसिक तथा राज सिंह क्रमशः गद्दी पर 1738 ईस्वी तक बैठे। राज सिंह के बाद उसका पुत्र सावंत सिंह गद्दी पर बैठा सावंत सिंह साहित्य रचना नगरीदास के नाम से प्रकाशित हुआ। यह कृष्ण के अनन्य उपासक थे।
सामंत सिंह एक कुशल चित्रकार ,कवि तथा लेखक थे।सुंदरी नगर की प्रेम पास में लीन होने के कारण सावंत सिंह ने अपना नाम नगरी दास रखा था रूपवती बनी ठनी का रूप इस शैली के चित्र में राधा के रूप में प्राप्त हुआ है।नागरी दास किशनगढ़ की चित्रकला का उत्कर्ष पर पहुंचाने का श्रेय महाराज सावन सिंह को ही है ।कुशल चित्रकार निहालचंद जिसने खंजन पक्षी के आकार वाले नेत्र या कमल की पंखुड़ियों के समान पीछे तक खींचे हुए नुकीला नेत्र बनाया है।धनुषाकार लंबी व नुकीली नाक लाल अधर के किनारे ऊपर की ओर चढ़ी है। गतिशील कोमल बारीक रेखाओं के प्रवाह कलाकारों की अद्भुत कौशल का परिचय है। कोमल बारीक केश विन्यास रूप को निखारने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। राधा कृष्ण की अद्भुत प्रेम को प्रेमी व प्रेमिका करो प्राकृतिक दृश्यों के साथ हुआ है।पीला के साथ उजला रंग का चांद व तारों का सदृश्य चित्र सुंदर अद्भुत है।
चांदनी रात में ताला तथा कुंड का पीठिका की सुंदर झांकी का व्यक्ति करण हुआ है चांदनी रात में संगीत गोष्ठी, प्रेमी प्रेमिका की अनोखी दृश्यों का अंकन नायक नायिकाओं के अलंकृत चित्र, उत्सव, नौका विहार ,प्रेम और प्रकृति के अंकन में कलाकारों ने विशेष रुचि दिखाई है कृष्ण लीला से संबंधित विषय अधिक है।
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