Patna Kalam
Patna style is also called Patna pen. The Mughal art also ended with the Mughal kings. The emergence of the Fast Patna pen was in 1760 A.D. and opened till 1949. The then Mughal-style painter settled for subsistence in various places like Patna Kolkata, etc., in the absence of political instability and revenue.Patna has been a hub of movement and trade since the previous period due to its settlement on the banks of Ganga. The painting style that was created by a mixture of Mughal art and European art was called the company style. The development stage of this style was the cooperation of both the British and the East India Company. The officers and businessmen of the English East India Company, staying in Patna, made and bought a number of miniature paintings, individual paintings, animal birds, natural scenes and people of Patna based on life, carpenters, blacksmiths, Dhobi shoemaker Barber Pandit, etc.
Such miniature tapestry is still safe in the museum and foreign collection potatoes. In the person's portrayal, a host company style painter Lal Chand and Gopal Chand were given patronage and honour by Maharaj Ieshwari Narayan Varanasi. The artists used to prepare pictures on the orders of the company's rights, traders, and kings, zamindars. The miniature paintings of this time are mostly produced on letters of ivory and mica.
Eminent painters of Patna style-
Patna come here and the first painter to start a historical tradition of painter is considered to be Ram Ji. Sevak Ram Ji was a painter of Kashi King but after the demise of the then Kashi King, he did not get protection there and he came to Patna. Some of the names of the painters are: Hulas Lal, Jairam Das, Mukund Lal, Gopal Lal, Bahadur Lal, Ieshwari Prasad Verma.The last patna style painter in Patna is with Ieshwari Prasad Verma, mahadev Lal's disciple Radha Mohan Prasad and the disciple damodar Prasad of this fairy Babu, etc., also tried to maintain the golden tradition of Patna style. The Government School of Arts and Crafts was established in Patna with the tireless work and perseverance of Shri Radha Mohan Prasad.
Patna style conservation-
most of the Patna style safe paintings are at the Victoria Museum, Albert Museum and India Office Library in London. With this, Patna Style paintings have been collected at Patna Museum, Patna, Bihar State Art Gallery, Patna, Bharat Kala Bhawan Varanasi, Kolkata Museum, National Museum, Delhi and Tata Art Gallery.
The picture of Patna pen is safe at the Chaitanya Library at Gayghat in Patna and the God Baksh Oriental Public Library near Patna University. The major centres of style in addition to Patna were Lahore, Delhi, Lucknow, Varanasi, Sahara, Tikari and Betia etc. Most of the brown, matmale, pink and ink colours have been used in Patna pen. In the twentieth century, ivory was unhying, many paintings were made on paper made from the history of export by Nepal.Their botanical colours, roses, red colour from the flower of Harsingar, yellow from the strike, whiteness from the oyster, black colour from the black, gold were also used to behave. Acacia glue was added to the color to make the color longevity to properly paste the colours on the picture pane.
पटना कलम
पटना शैली को पटना कलम भी कहते हैं। मुगल राजाओं के साथ मुगल कला का भी अंत हो गया।फसरू पटना कलम का आविर्भाव 1760 ईस्वी में हुआ और 1949 तक खुला खुला।मुगल शैली के तत्कालीन चित्रकार राजनैतिक अस्थिरता व राजस्व के अभाव में विभिन्न स्थानों जैसी पटना कोलकाता आदि में निर्वाह के लिए जा बसे।पटना गंगा के तट पर बसा रहने के कारण पूर्व काल से आवागमन और व्यापार का केंद्र रहा है। मुगल कला और यूरोपीय कला के मिश्रण से किस चित्र शैली का निर्माण हुआ वह कंपनी शैली कहलाए। इस शैली की विकास अवस्था में अंग्रेजों और ईस्ट इंडिया कंपनी दोनों का सहयोग मिला। अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की आधिकारी तथा व्यापारी पटना में रहकर चित्रकारों से लघु चित्र, व्यक्ति चित्र, पशु-पक्षी, प्राकृतिक दृश्य तथा पटना के लोग जीवन पर आधारित किसानों, बढ़ई, लोहार, धोबी मोची नाई पंडित इत्यादि के अनेक चित्र बनवाते व खरीदते थे।
ऐसे लघु चित्रपट रह संग्रहालय तथा विदेशी संग्रह आलू में आज भी सुरक्षित है।व्यक्ति चित्रण में सी होस्ट कंपनी शैली के चित्रकार लाल चंद व गोपाल चंद को महाराज ईश्वरी नारायण वाराणसी ने प्रश्रय एवं सम्मान दिया था।कलाकार कंपनी के अधिकारों, व्यापारियों, तथा राजाओं, जमींदारों के आदेश पर ही चित्र तैयार करते थे।इस समय के लघु चित्र हाथी दांत तथा अभ्रक के पत्रों पर ही अधिकतर निर्मित हुए हैं।
पटना शैली के प्रख्यात चित्रकार-
पटना आकर यहां चित्रकार की एक ऐतिहासिक परंपरा शुरू करने वाले प्रथम चित्रकार सेवक राम जी माने जाते हैं।सेवक राम जी काशी नरेश के चित्रकार थे मगर तत्कालीन काशी नरेश के निधन के बाद उन्हें वहां संरक्षण नहीं मिला और वे पटना आ गए। चित्रकारों के कुछ नाम इस प्रकार हैं- हुलास लाल, जयराम दास, मुकुंद लाल, गोपाल लाल, बहादुर लाल, ईश्वरी प्रसाद वर्मा।पटना में पटना शैली की अंतिम चित्रकार ईश्वरी प्रसाद वर्मा के साथ हैं महादेव लाल के शिष्य राधा मोहन प्रसाद तथा इस परी बाबू के शिष्य दामोदर प्रसाद आदि ने भी अपने चित्रांकन से पटना शैली की स्वर्णिम परंपरा को बरकरार रखने का प्रयास किया। श्री राधा मोहन प्रसाद के अथक परिश्रम और लगन से पटना में गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स की स्थापना हुई।।
पटना शैली का संरक्षण-
पटना शैली के ज्यादातर सुरक्षित चित्र संप्रति लंदन स्थित विक्टोरिया म्यूजियम, अल्बर्ट म्यूजियम तथा इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी में है।इसके साथ ही पटना संग्रहालय पटना, बिहार स्टेट आर्ट गैलरी पटना, भारत कला भवन वाराणसी, कोलकाता संग्रहालय, राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली तथा टाटा आर्ट गैलरी में पटना शैली के चित्रों का संग्रह किया गया है।
पटना कलम के चित्र पटना के गायघाट स्थित चैतन्य पुस्तकालय तथा पटना विश्वविद्यालय के पास स्थित खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी में सुरक्षित है।पटना के अतिरिक्त शैली के प्रमुख केंद्र लाहौर, दिल्ली, लखनऊ, वाराणसी, सहारा, टिकारी और बेतिया आदि स्थान थे। पटना कलम में अधिकांश भूरे, मटमैले, गुलाबी तथा स्याही रंगों का प्रयोग हुआ है।बीसवीं सदी में हाथी दांत, अभरख था, नेपाल द्वारा निर्यात इतिहास से निर्मित कागज पर अनेक चित्र बनए।उनके वनस्पतिक रंग, गुलाब के फूल, हरसिंगार के फूल से लाल रंग, हड़ताल से पीला, सीप से सफेदी, कालीख से काला रंग, सोना चांदी के तबक भी व्यवहार करते थे।चित्र फलक पर रंगों को ठीक से चिपकाने के लिए यहां रंग को दीर्घायु करने के लिए रंग में बबूल का गोंद मिलाया जाता था।
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