Chamba style.
The folk art of recovery continued even when the Kangra style was extinct. The painters of the bus Eori also went to Jammu, Banderlata, and Chamba princely states around Basohalli. Thus the Chamba style originated before the eighth century. With a terrible fire in 1735 cc, most of the artifacts in the city were burnt down. There is no other example except Kalki and Parasuram. The art tradition was retained from 1748 to 1774.
In 1665 A.D., the style painter of hill art came from Nukka Gulre to Chamba. The development of Chamba style at the time of Raja Raj Singh was at a high peak. The image picture has been received from Raja Raj Singh and his son Raja Jeet Singh which is very beautiful. Raj Singh had so much progress of painting from the victory and from the road to the art of the kings and reached the masses. The tradition of portraiture in every form took the form of folk art. The mural world of Chamba is famous.
Painting on the walls, doors of houses had become a tradition. The rupee image became a number of pictures based on pictures and mythology as soon as the collective image of his eldest son was found with King Rani. The paintings of mythological subjects have found Anirood and Usha, Krishna and Rukmani, Sudama-Krishna etc. A picture of the weather-related paintings is preserved in the Wali Brown Singh Museum.
In Chamba, ramayana, Durga Saptakti, love-Kush, Lakshmi-Narayan puja, Dashavatar, Prem Pranoy, Kansa Slaughter, Krishna Lila, Shiv Parvati, Ram's court music oriented women's case configuration, makeup, Yashoda Krishna, bathing gopian, couple Pranoy, deer and birds have received pictures of fodder for women etc.
चंबा शैली।
कांगड़ा शैली के विलुप्त होने पर भी वसूली की लोक कला बनी रही। बस ओवरी के चित्रकार भी बसोहली के आसपास जम्मू, बंदरलता, और चंबा रियासतों की ओर गए।इस प्रकार चंबा शैली का उद्भव आठवीं शताब्दी के पूर्व हुआ था।1735 सीसी में भयानक आग लग जाने से नगर के अधिकांश कलाकृतियों जलकर नष्ट हो गए। कलकी और परशुराम के अलावा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। उम्मीद से 1748 से 1774 तक कला परंपरा को कायम रखा।
1665 ईस्वी में पहाड़ी कला का शैली चित्रकार नुक्का गुलरे से चंबा आया।राजा राज सिंह के समय चंबा शैली का विकास उच्च शिखर पर था। राजा राज सिंह और उनके पुत्र राजा जीत सिंह से रुप छवि चित्र मिले हैं जो अति सुंदर है।राज सिंह जीत से और सड़क से तक चित्रकला का इतना अधिक उन्नति हुई की कला राजाओं के दरबारों से निकलकर जनसाधारण में पहुंच गए। हर स्वरूप चित्रांकन की परंपरा लोक कला का रूप लिया। चंबा के भित्ति चित्र जगत प्रसिद्ध है।
घरों की दीवारों, दरवाजों पर चित्रकारी करना एक परंपरा बन गई थी।रुपया छवि चित्र तथा पौराणिक कथाओं के आधार पर अनेकों चित्र बने जैसे ही राजा रानी के साथ उसके बड़े पुत्र का सामूहिक छवि चित्र मिली है।पौराणिक विषयों के चित्रों में अनिरुद्ध और उषा, कृष्ण और रुक्मणी, सुदामा-कृष्ण आदि मिले हैं।ऋतु से संबंधित छा चित्रों की एक चित्र वली भूरी सिंह संग्रहालय में सुरक्षित है।
चंबा में रामायण ,दुर्गा सप्तशती, लव-कुश, लक्ष्मी-नारायण की पूजा, दशावतार, प्रेम प्रणय, कंस वध, कृष्ण लीला, शिव पार्वती, राम का दरबार संगीत के प्रति उन्मुख स्त्रियां केस विन्यास, श्रृंगार, यशोदा कृष्ण, स्नान करती हुई गोपियां, युगल प्रणय, हिरण व पक्षियों को चारा खिलाते स्त्रियां आदि चित्र मिले हैं।
4 comments
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Replyexcellent
Replyचंबा भित्ति चित्र कला और चंबा के चित्रण शैली का जीवंत वर्णन किया है आपने। बहुत बढ़िया जानकारी ।
ReplyThanks for sharing about Traditional Painting. Your content is realy informative for us......Thank a lot
Replymangala tanjorepaintings
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