Hill Painting and Kangra style

 Hill style. 

Hill painting is called Kangra style or Kangra pen. Many local sub-styles of hilly areas in Himachal Pradesh and Punjab originated from the valley places of Basauli, Kangra, Jammu, Chamba, etc., from the 17th century to the 19th century. This style was first developed in the states of Kangra Valley like Gulur, Tira, Noorpur etc. The coordinated form of this style feature in "Ragmala" in which musical ragas got pictorial form. The simple life of the hills is full of merriment.An atmosphere full of natural beauty the wonderful expression of religion and love we come in the paintings of Radha Krishna. The artists have been depicted in the pictures of the later period, the status of the meeting of Radha Rupee Soul and Krishna Rupi God, which has been an expression of spiritual bliss.In which the hero heroine distinctions are also a symbolic portrayal of Radha Krishna and pictures of makeup etc. Beautiful women have been specially in this style using colours that depict sexuality with positive images of the clouds and their dissociative agony.The miniature paintings inscribed at the Nareshwara temple near Maharaja Samsara Chand and Maharani's Art Prem Nagaur Durg are a scholar.

पहाड़ी शैली। 

पहाड़ी चित्रकला को कांगड़ा शैली या कांगड़ा कलम कहते हैं।हिमाचल प्रदेश और पंजाब में पहाड़ी क्षेत्रों की अनेक स्थानीय उप शैलियों 17वीं सदी से 19वीं सदी तक बसौली, कांगड़ा, जम्मू ,चंबा इत्यादि घाटी के स्थानों से उत्पन्न हुई। गुलेर, तीरा, नूरपुर आदि कांगड़ा घाटी के राज्यों में सर्वप्रथम इस शैली का विकास हुआ।इस शैली की विशेषता का समन्वित रूप "रागमाला" में जिसमें संगीत रागों को चित्रात्मक रूप मिला। पहाड़ियों का सादा जीवन आमोद पूर्ण होता है।प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण वातावरण धर्म और प्रेम की अद्भुत अभिव्यक्ति हम राधा कृष्ण के चित्रों में आते हैं। कलाकारों ने परवर्ती काल के चित्रों में राधा रुपए आत्मा और कृष्ण रुपी परमात्मा के मिलन की स्थिति को बड़े हैं मनोयोग से चित्रित किया गया है, जिसमें आध्यात्मिक आनंद की अभिव्यक्ति हुई है।जिसमें नायक नायिका भेद राधा कृष्ण का प्रतीकात्मक चित्रण तथा श्रृंगार आदि के भी चित्र मिलते हैं। सुंदर स्त्रियों का बादलों को देखना एवं उनकी विरह व्यथा का बसानात्मक चित्रों के साथ कामुकता उद्धृत करने वाले रंगों का उपयोग कर इस शैली में विशेष रूप से किया गया है।

Kangra style. 

From the sixteenth century to the 19th century, golden specimens came into painting with the return of the art movement in hilly areas. The Kangra style was developed by blending the interactions with guler, recovery and Jammu arts. By the reign of the Turtle dynasty, Amerchand, Abhay Chandra, Haughtiness Chandra, and Samsara Chandra were effective kings.

The major art centres of Kangra style were Gulur Noorpur and Tirasujanpur. In 1739 A.D., destitute painters from the Mughal court came to the hilly states. They found a good atmosphere of peace and painting with shelter there. There were small secrets in the hilly areas, so the artists were directly concerned with the Kings. The painter who moved towards the Kangra Valley got the first hilly state of Gulur.

The chief artist of guler style was Bishan Singh. King Vasudeva of Noorpur built a large temple of Krishna with the earliest specimens of Basholi. The third important centre of Kangra style was Tirasujanpur. King Samsara Chand gave adequate respect and protection to the artists by the artistic beloved ruler. Sanssar Chand created a new revolution in the art world and brought art to the final peak. The great warrior policy was a crowd of painters in the court of the skilled and liberal ruler Samsara Chand.

The name of Kusla and Manku is noteworthy in the Kangra-style skilled painter Husan Lal and Purkhu etc. The forefathers were a high-quality painter. The painters there have passed raag Ragini based on music in Kangra style paintings in Rajasthani style with proper atmosphere. The subjects of the paintings were Bhagwat Purana, song Govind, Bihari Satya, Ramayana, Mahabharata, Shiv Parvati Gale, the basis of old tales.

The combination of the love girlfriend has been symbolically depicted in the tree and the draped on it, the lotus in the painted Sarovar, the waves of water with kumud flowers are also shown. In the rain, heron is depicted in birha, stork and human mind friendly. The unique lava leader of the pictures of the naras' faces, change, moonlight round countenance play self-made hand postures attracts the farmers spontaneously. Which configuration of women is considered to be a symbol of black snake 20 bhusa and building time is favourable.

कांगड़ा शैली

सोलहवीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक पहाड़ी क्षेत्रों में कला आंदोलन की प्रतिफल से स्वर्णिम नमूने चित्रकला में आए।गुलेर ,वसूली तथा जम्मू कलाओं से पारस्परिक प्रभावों के सम्मिश्रण से कांगड़ा शैली का विकास हुआ। कछुआ वंश के शासन काल तक अमीरचंद, अभय चंद्र, घमंड चंद्र, तथा संसार चंद्र प्रभावी राजा हुए।

कांगड़ा शैली के प्रमुख कला केंद्र गुलेर नूरपुर तथा टिरासुजानपुर थे।1739 ईस्वी में मुगल दरबार से निकाले गए निराश्रित चित्रकार पहाड़ी राज्यों की ओर आए।उन्हें वहां आश्रय के साथ शांति तथा चित्रकला का अच्छा वातावरण मिला।पहाड़ी क्षेत्रों में छोटे-छोटे राज थे अतः उस कलाकारों का सीधा संबंध राजाओं से हो गया। जो चित्रकार कांगड़ा घाटी की ओर बढ़ी है उन्हें पहला पहाड़ी राज्य गुलेर मिला।गुलेर शैली के प्रमुख कलाकार बिशन सिंह हुए। नूरपुर के राजा वासुदेव ने कृष्ण का एक वृहद मंदिर बनवाया था जिसमें बसहोली की प्राचीनतम नमूने अंकित है। कांगड़ा शैली का तीसरा महत्वपूर्ण केंद्र टिरासुजानपुर था।वहां के राजा संसार चंद ने कलाप्रेमी प्रिय शासक ने कलाकारों को पर्याप्त सम्मान एवं संरक्षण दिया। संसार चंद ने कला जगत में नवीन क्रांति उत्पन्न कर कला को अंतिम शिखर पर पहुंचा दिया। महान योद्धा नीति कुशल और उदार शासक संसार चंद के दरबार में चित्रकारों की भीड़ लगी रहती थी।महाराजा संसार चंद तथा महारानी के कला प्रेम नागौर दुर्ग के पास नर्मदेश्वर मंदिर में अंकित लघु चित्र इसके प्रमाण स्वरूप विद्वान है।

कांगड़ा शैली के कुशल चित्रकार हुसन लाल व पुरखु इत्यादि में कुशला और मानकु का नाम उल्लेखनीय है। पुरखों एक उच्च कोटि का शिर्सत चित्रकार था। वहां के चित्रकारों ने कांगड़ा शैली के चित्रों में संगीत पर आधारित राग रागिनी को उचित वातावरण के साथ राजस्थानी शैली में अति सुंदर ढंग से पारित किया है। चित्रों के विषय भागवत पुराण, गीत गोविंद, बिहारी सत्या, रामायण, महाभारत, शिव पार्वती आंधी पुरानी कथाओं के आधार थे।

प्रेम प्रेमिका की संयोग अवस्था को वृक्ष तथा उस पर लिपटी लती को प्रतीकात्मक रूप से चित्रित किया गया है चित्रित सरोवर में कमल, कुमुद फूलों के साथ जल के तरंगों को भी दिखाया गया है। वर्षा में बगुला, बिरहा में सारस और मानव मन को अनुकूल चित्रित है। नारियों के चेहरे, बदल, चांदनी गोल मुखाकृति प्ले आत्मक हस्त मुद्राओं के चित्रों का अनुपम लावा नेता कृषकों के अनायास ही आकर्षित करती है। स्त्रियों के किस विन्यास को काले सर्प का प्रतीक माना है 20 भूसा तथा भवन समय अनुकूल है।


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