Mughal Painting style

 Aurangzeb. 

Mughal Painting style

At the time of Alamgir Sahni Aurangzeb, it was the work of bantu to put a person picture and it was impossible to be done with imagination. Many people from Aurangzeb's youth to old age have been made soon like photography by picture artists. The art must have been used. In the Gwalior fort, he had closed his gene family and remembrance of him every month to find out the remembrance of his son, Mohammad Sultan.To see the physical changes of these hungry raj prisoners or Mamata had just made pictures of her son from time to time. The main theme of the paintings at that time has been the person's picture, raag colour and luxury. A portrait of the countenance of the young period is preserved in the British Museum. A portrait of Aurangzeb, surrounded by Bijapur, is in Rampur Museum. Whatever Mughalson was escaping, he also ended up with Alamgir Sahni.

Mughal Painting style

Mughal paintings were produced in the form of miniature paintings. At that time, silk, daulatist, Sialkoti, etc., were available. The day before the paper before the picture, i.e., glued to a strong level and prepared a thin white lining that was two-three linings. The giru was then graphically used to be called "Tipai". Flat colours were filled after accounting. The entire picture was reversed on the surface of the Sant Concave or glass and used to be in the bate etc., causing some brightness in the picture.

Mughal Painting style

In a light-coloured place, it was repainted, called "mattress". Finally, it was finished by fine lines called "open". After the illustration was completed, the ornamentation of bell boote, etc., in the margins from all sides was done by skilled painters. Bright and shiny botanical chemical and mineral dyes have been used in the paintings. Is used by mixing white in colours. Botanical color black, Mahabar blue, yellow. Chemical color white, red, verdur, hingol. The mineral colour was prepared from red, ochre, etc.Blue, yellow, white, green, etc., were obtained from the vegetable. The violet, thick green, half-colored preparations were prepared by a mixture of suitable colours. The ash of the conch, the piercing of the mica, the colour of gold silver were also used. Mughal Rock I have a glasses face depicted on the margins of the paintings, the bride of the ornamentation and the painters have shown cold colours in the paintings for the backdrop that is dear to the audience.The beloved theme of the Mughal emperors is also the depiction of the animal bird the picture of the world famous Baz bird has been created by Ustad Mansoor, which is creating a sense of kurta violence in bagchi eyes. 

Mughal Painting style, Aurangzeb
Mughal Painting style, Aurangzeb

Thus, we see that the painting of Mughal Shayari was a perfect painting style in itself which has been going on for generations. Even in today's painting, some shadow of the Mughal army is shown.

औरंगजेब। 

आलमगीर साहनी औरंगजेब के समय व्यक्ति चित्र लगाना बंटू का काम था और कल्पना से उसका किया जाना असंभव था।औरंगजेब की युवावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक के अनेक व्यक्ति चित्र कलाकारों द्वारा फोटोग्राफी की तरह शीघ्र ही बनाए गए हैं। कला का उपयोग वाह अवश्य करता था।ग्वालियर के किले में उसने अपने जीन कुटुंबयों को बंद कर रखा था उसका याद हार्थ अवस्था जानने के लिए वह हर महीने उसकी तस्वीरें बनवाया करता था जिसमें उसका जेष्ठ पुत्र मोहम्मद सुल्तान भी था।इन भूखे राज बंदियों की शारीरिक परिवर्तनों को देखने के लिए या ममता बस अपने पुत्र के चित्र समय-समय पर बनवाए थे। उस समय के चित्रों का मुख्य विषय व्यक्ति चित्र, राग रंग और विलासिता से ही संबंध रहा है। युवा काल की मुखाकृति का एक चित्र ब्रिटिश संग्रहालय में सुरक्षित है। बीजापुर के घेरे में बंद औरंगजेब का एक चित्र रामपुर संग्रहालय में है। जो कुछ मुगलसन बच रही थी उसका भी अंत आलमगीर साहनी के साथ हो गया।

मुगलकालीन चित्रों का निर्माण विशेषता लघु चित्रों के रूप में हुआ। उस समय रेशमी, दौलतवादी, सियालकोटी आदि कागज उपलब्ध थे।चित्र के पूर्व कागज के दिन पहले दी यानी गोंद से चिपका कर एक मजबूत स्तर तैयार कर पतले सफेद कि दो-तीन अस्तर लगाते थे। तत्पश्चात गिरु रंग से रेखांकन किया जाता था इसे  "टिपाई" कहते थे। लेखांकन के बाद सपाट रंग भरे जाते थे।संपूर्ण चित्र संत अवतल या कांच की सतह पर उलट कर रख दिया जाता था और बटे आदि में घुटाई करते थे जिससे चित्र में कुछ चमक आ जाती थी।

हल्के रंगों वाले स्थान में पुनः रंग लगाए जाते थे इसे "गद्दकारी" कहते थे। अंत में बारीक रेखाओं द्वारा समापन करते थे जिसे "खुलाई" कहते थे।चित्रण पूर्ण होने के बाद चारों तरफ से हाशियों में बेल बूटे आदि का अलंकरण कार्य कुशल चित्रकारों द्वारा संपन्न होता था।चित्रों में चमकीले तथा चमकदार वानस्पतिक रासायनिक तथा खनिज रंगों का प्रयोग हुआ है। रंगों में सफेद मिलाकर प्रयुक्त हुआ है। वनस्पतिक रंग काला, महाबार नीला , पीला। रासायनिक रंग सफेद, लाल, सिंदूर, हिंगोल। खनिज रंग लाल, गेरू आदि से तैयार किया जाता था।

नीला, पीला ,सफेद, हरा इत्यादि साग सब्जी से प्राप्त किया जाता था।उपयुक्त रंगों के मिश्रण से बैगनी, गाढ़ा हरा, आधी रंग तैयार करते थे।शंख का भस्म, अभ्रक के चुरण, सोना चांदी के चुरण से भी बने रंग प्रयोग होते थे। मुगल शैल मैं एक चश्मा चेहरे का चित्रण किया गया है चित्रों के हाशिए पर अलंकरण की बहू का है तथा चित्रकारों ने दर्शकों को प्रिय लगने वाली पृष्ठभूमि के लिए चित्रों में ठंडे रंगों का दर्शाया है।मुगल बादशाहों का प्रिय विषय पशु पक्षी का चित्रण भी रहा है जगत प्रसिद्ध बाज पक्षी का चित्र उस्ताद मंसूर द्वारा बनाया गया है जिसमें बागची आंखों में कुर्ता हिंसा का भाव उत्पन्न हो रहा है।

 इस प्रकार हम देखते हैं कि मुगल शायरी की चित्रकला अपने आप में एक परिपूर्ण चित्रकला शैली थी जोकि कई पीढ़ियों से चलता आ रहा है। आज की चित्रकला में भी मुगल सेना की कुछ परछाई दिखाई पड़ता है।

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1 comments:

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y
admin
September 2, 2020 at 9:32 PM ×

good

Congrats bro y you got PERTAMAX...! hehehehe...
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