Sanchi
Sanchi is located in Sihor district of Madhya Pradesh state of India. There are ancient stupas and other lucky ruins, which is why this place is famous. Sanchi village is located on a hill with a 300 ft high peak of sandstone. The Bihat stupa is located in the middle of the hill or the stupa is like a spherical section and is made of red sandstone. The diameter of the astu at the base is 110 feet. There is a 15 foot track that is pouring out of the base which forms the ambulatory path around the object and due to this track, the diameter of the base becomes 121 feet 6 inches.
The top of the stupa is flat and I was the prevailing urn of stone on this plane. There is a stone-like stone besni around the stupa with 4 entrances and decorative and graphical excavations. Inside the emblem door are almost human-sized sculptures of meditative mercury, the major attraction of the entire monument is the four entrances located in all directions. The height of each column is 28 feet 5 inches and the height from top to ornamentation is 32 feet 11 inches.
It is made of white sandstone today and has a view of Buddha's folk tale and Jataka tales in these scenes expressed by the symbols of Lord Mercury, which depicts the Charan Jain or the Buddhist tree. In a very just meditation or preaching, buddha statues do not get any sign of such idols at the first gates, both of them have many beauty and live paintings with regard to the biography of the buddha, somewhere on the living pictures of elephants and a serpent, etc.
The construction of the stupa is believed to be about 250 A.D. east and was probably built by the same Emperor Ashoka. The carving of the gates shows that it is somewhat east of the century, the north-east of the larger stupa was earlier a small stupa which is now just a pile of bricks and an entrance to the front. More than 400 engraved articles have been found.The last article is god at the bestneo and gates. The pillar has been excavated on which the emperor's kingdom commandment is recorded. These articles clearly say that all sections of the people had faith in Buddhism. The records from the first and second centuries A.D. to the 10th century have been found as gifts by King Shatani of the Stadh and two records of 412 and 450 A.D., which were the secret.
सांची।
सांची भारत की मध्य प्रदेश राज्य के सीहोर जिले में स्थित है।यहां प्राचीन स्तूप तथा अन्य भाग्यनावशेष हैं जिसके कारण यह स्थान प्रसिद्ध है। सांची ग्राम बलुआ पत्थर की 300 फुट ऊंची चोटी वाली पहाड़ी पर स्थित है। बिहट स्तूप पहाड़ी के मध्य में स्थित है या स्तूप गोलीय खंड जैसा है और लाल बलुआ पत्थर का बना है। आधार पर अस्तु का व्यास 110 फुट है।आधार से बाहर की ओर डालने वाली 15 फुट चौड़ी पटरी है जो वस्तु के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ बनाती है और इस पटरी के कारण आधार का व्यास 121 फुट 6 इंच हो जाता है।
स्तूप का शीर्ष समतल है और मुझे तो इस समतल पर पत्थर की बेस्टनी प्रथा प्रचलित कलश था। स्तूप के चारों ओर पत्थर की बेस्टनी लगी है जिसमें 4 प्रवेश द्वार है और इन पर सजावटी एवं चित्रमय खुदाई है। प्रतीक द्वार के अंदर ध्यानी बुध की लगभग मानव आकार मूर्तियां हैं, संपूर्ण स्मारक के प्रमुख आकर्षण चारों दिशाओं में स्थित चार प्रवेश द्वार है। प्रत्येक स्तंभ की ऊंचाई 28 फुट 5 इंच तथा ऊपर से अलंकरण तक ऊंचाई 32 फुट 11 इंच है।
यह तो आज सफेद बलुआ पत्थर के बने हैं और इन पर बुद्ध संबंधी लोक कथा एवं जातक कथाओं का दृश्य अंकित है इन दृश्यों में भगवान बुध के प्रतीकों द्वारा व्यक्त किया गया है जिसमें चरण जैन या बौद्ध वृक्ष को दर्शाया गया है।बहुत ही सिर्फ में ध्यान अवस्थित या उपदेश देते हुए बुद्ध की मूर्तियों को पहले द्वारों पर ऐसे मूर्तियों का कोई चिन्ह भी नहीं मिलता है दोनों पर बुद् की जीवनी के संबंध रखने वाली अनेक सुंदरी और सजीव चित्र बने हुए हैं उन पर कहीं-कहीं हाथी और एक नाग इत्यादि की जीती जागती चित्र बने हुए हैं।
स्तूप के निर्माण का लगभग 250 ईसवी पूर्व का माना गया है और संभवत इसी सम्राट अशोक ने बनवाया था।द्वारों के नक्काशी से ज्ञात होता है कि यह शताब्दी के कुछ पूर्व हैं वृहद स्तूप के उत्तर पूर्व में पहले एक छोटा स्तूप था जो अब ईटों का ढेर मात्र है और सामने एक प्रवेश द्वार है। 400 से अधिक उत्कीर्ण लेख मिले हैं।जिनमें से अंतिम लेख बेस्टनियो एवं द्वारों पर खुदा हुआ है।यहां के स्तंभ की खुदाई से प्राप्त हुए हैं जिस पर सम्राट की राज आज्ञा अंकित है।इन लेखों से स्पष्ट है कि सभी वर्गों के लोगों में बौद्ध धर्म के प्रति आस्था थी।प्रथम एवं द्वितीय शताब्दी ईस्वी पूर्व से लेकर 10 वीं शताब्दी तक के अभिलेख मिले हैं दक्षिण द्वार के स्तंभों के ऊपर रखा शक्ति रंध्र के राजा शातकरनी द्वारा उपहार रूप में दिया गया था तथा दो अभिलेख 412 एवं 450 ईसवी के हैं जो गुप्तकालीन थे।
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