Sarnath art style

Sarnath 

Sarnath art style

The place is named Sarnath in the name of Shiva, a town located 4 miles northwest of Varanasi. Here is the remains of the ancient masterpiece of some Buddhist stupas and Buddhists. U China was a stupa built west of the North East Barna River in the capital, according to the Un colour. The height of the stupa was 100 feet and there was a stone pillar in the front.
The Vihar and Sangh were located there. The Buddhism cycle of a large copper in the middle of Bihar was busy in enforcement. The beautiful Karukare graced stone from the excavation has been found to be a part of the archway which is now in the Kolkata Museum. Like Sanchi and Bharhut, stone railings are also in Sarnath. Here are 30 to 40 squares called Asthan Sarnath.
   From the first of the time of Maharaja Ashoka, Sarnath is located high from the land section of his vicinity, a Bodhisattva and script of the time of Maharaja Kanishak, Maharaj Ashoka himself, the Lord of this pillar pillar function, the Lord of a great war and a khodeep script of King Ashghosh and a number of Hindu Jain and Buddhist deities.
The Museum of Sarnath has sculptures of Maurya, Shung, Kushan and Gupta period. The statue of the pillar lion, the 7 feet high statue of The Bodhisattva of Mathura and the statue of Ganesha are noteworthy. In addition, there are many other small sculptures. 
  In the Mauryan period, Ashoka was the most influential king with a high-quality Sheila pillar of time, the pillar goal and the bottom of the head.There are very beautiful specimens of Ashoka and his former sculpture on the top of these millions, which is the best on Sarnath Wala. The 4 Sims that have been seated at its end seem to be absolutely alive. Their shape is very beautiful and visible. These shapes are the best animal sculptures of the world, this pillar is of the stone of the election, it has been smooth over the stone that it is a unique gift of The Stone art of India, which does not stay on the eyes of the audience.
   The secret period is called the Golden Age of India's history, sculpture was also flourishing under the all round development of this period. His art is a beautiful blend of sentimentality and spirituality and is an unremarkable blend of beauty and delightful. Sarnath's Mercury idol is noteworthy in which Lord Mercury is shown sitting on Padmaasan by looking at the statue, mercury god's seriousness is clearly visible to the peace and tenderness of god. There is no worldly inertia in their postures, which is dripping from each part of them.
 सारनाथ

वाराणसी से 4 मील उत्तर-पश्चिम में अवस्थित एक कस्बा, शिव के नाम से इस स्थान का नाम सारनाथ पड़ा है। यहां कुछ बौद्ध स्तूप और बौद्धों की प्राचीन कृति का अवशेष है यू चीन परिव्राजक यूएन रंग के अनुसार राजधानी के उत्तर पूर्व बरना नदी के पश्चिम अशोक राज निर्मित एक स्तूप था। उस स्तूप की ऊंचाई 100 फुट थी सामने में एक प्रस्तर स्तंभ था।
वहां विहार और संघ आराम अवस्थित था। बिहार के मध्य स्थल में एक वृहद ताम्र के बौद्ध धर्म चक्र प्रवर्तन में व्यस्त थे।खुदाई से प्राप्त सुंदर कारुकारे शोभित प्रस्तर में तोरण का अंग पाया गया है जो अभी कोलकाता म्यूजियम में है। सांची और भरहुत की तरह पत्थर की रेलिंग सारनाथ में भी है। यहां 30 से 40 वर्गमिल अस्थान सारनाथ कहलाता है।
  महाराजा अशोक के समय की पहले से लेकर प्राया 2000 वर्ष से सारनाथ अपने आसपास की भूमि खंड से ऊंचे में अवस्थित है महाराजा कनिष्क के समय की एक बोधिसत्व तथा लिपि,महाराज अशोक का खुद इस स्तंभ स्तंभ फलन का भगवान एक वृहद संग्राम की बिकती और राजा अश्वघोष की एक खोदीप लिपि और बहुत ही सी हिंदू जैन तथा बौद्ध देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं।सारनाथ की संग्रहालय में मौर्य, शुंग, कुषाण और गुप्त काल के मूर्तियां हैं। जिनमें स्तंभ के शेर की 7 फीट ऊंची मूर्ति, मथुरा की बोधिसत्व की मूर्ति और गणेश जी की मूर्ति उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त अन्य बहुत सी छोटी मूर्तियां हैं।
 मौर्य काल में अशोक सबसे अधिक प्रभावशाली राजा हुआ था जिसकी समय की उच्च कोटि की शीला स्तंभों की लाट गोल और नीचे से सिर तक चढ़ाव उतारदार है।इन लाखों के ऊपर के पर गए अशोक और उसके पूर्व की मूर्तिकला के बड़े ही सुंदर नमूने हैं इनमें सारनाथ वाला पर गहा सर्वश्रेष्ठ है। इसके सिरे पर जो 4 सिम बैठाए गए हैं वह बिल्कुल सजीव प्रतीत होते हैं। उनकी आकृति अत्यंत ही सुंदर एवं दर्शनीय है। यह आकृतियां संसार की पशु मूर्तियों मैं सर्वोत्कृष्ट है यह स्तंभ चुनाव की पत्थर के हैं पत्थर के ऊपर ऐसा चिकना किया गया है कि दर्शकों की आंखों तक उन पर नहीं ठहरती यह भारत की प्रस्तर कला की एक अनुपम भेंट है।
   गुप्त काल भारत के इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है इस काल के सर्वांगीण विकास के अंतर्गत मूर्तिकला ने भी उत्कर्ष पर थी।उनकी कला भावुकता एवं आध्यात्मिकता का सुंदर सा मिश्रण है तथा सुंदरता एवं रमणीय ताका अपूर्व सम्मिश्रण है।सारनाथ की बुध मूर्ति उल्लेखनीय है जिसमें भगवान बुध पद्मासन पर बैठे हुए दिखाए गए हैं प्रतिमा को देखने से ही बुध भगवान की गंभीरता अपूर्व शांति एवं उनकी कोमलता स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है।उनकी प्रत्येक अंग से सुकुमारता टपकती है उनकी मुद्राओं में सांसारिक जड़ता नहीं है।
  
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