Elephanta.
Elephanta is an island surrounded by sea around 6 miles in Mumbai with the real name stream complete. In this pickup, the upper part of the two big mountains has been carved out and built as a home temple. The compositions are the eighth century and the ancient art specimens in Elephanta are kalchuricarpet sculptures. The Cave temple of Elephanta has remarkable sculptures of Maheshwar's Prakand Trimurti and Shiva's Tandav dance etc. The giant tri statue carved on the stone is artistic and alive.
There is an unprecedented seriousness on the mouth of the idol. The huge jata jute on it is giving the work of a beautiful crown the lip beneath the idols of this period has been constructed thick and flan flancond. The makeup and ornaments of the three seer in idols have been very closely coined. This statue reflects the spirit of the time when Shankar Ji had the dignity of Cupid. The statue is 10 feet high and is a famous statue of the Ganga avatar in which Shiva and the mountain are built 5 feet high on the side of the side, there are also statues of Ardhanarihwar.
The second idol is fractured, it is an excellent example of a submerged dance car of emotions. The statue of Yojraj Shiva is also very serious and beautiful. In addition, chaudhary sangeet of the marriage of Shiva and Parvati has become more beautiful than Ellora. These idols also express the spirit of parvati's self-dedication and the spirit of accepting mahadev's love, both very successful and sculptor's efficiency. There is a female shape riding on the live shaking Singh with 8 arms.
एलिफेंटा।
एलीफेंटा मुंबई में 6 मील की दूरी पर चारों ओर समुद्र से घिरा एक टापू है जिसका वास्तविक नाम धारा पूरी है। इस पिक में दो बड़े पर्वतों के ऊपरी भाग को तराश कर गृह मंदिर बनाया गया है। रचनाकाल आठवीं शताब्दी है तथा एलिफेंटा में प्राचीन कला के नमूने कलचुरीकालीन मूर्तियां हैं।एलिफेंटा की गुफा मंदिर में महेश्वर के प्रकांड त्रिमूर्ति तथा शिव के तांडव नृत्य आदि के उल्लेखनीय मूर्तियां है। पत्थर पर खुदी विशालकाय त्रि मूर्ति कलात्मक एवं सजीव है।
मूर्ति के मुख पर अपूर्व गंभीरता है। उस पर विशाल जटा जूट एक सुंदर मुकुट का काम दे रही है इस काल की मूर्तियों के नीचे के होंठ का निर्माण मोटा और निकला हुआ किया गया है। मूर्तियों में तीनों सीर के श्रृंगार और अलंकारों को बड़ी बारीकी से गढ़ा गया है।यह मूर्ति उस समय के भाव को दर्शाती है जब शंकर जी ने कामदेव का मान मर्यादा किया था। यह मूर्ति 10 फीट ऊंची है तथा गंगा अवतार की एक प्रसिद्ध मूर्ति है जिसमें शिव और पर्वती को अगल बगल खड़े हुए 5 फीट ऊंचे बनाए गए हैं यहां अर्धनारीश्वर की मूर्तियों भी है।
दूसरी मूर्ति खंडित है वह भावों के डूबे हुए नृत्य कार का उत्कृष्ट उदाहरण है।यहां की योगीराज शिव की मूर्ति भी अत्यंत गंभीर एवं सुंदर है।इनके अतिरिक्त शिव और पार्वती के विवाह का चौधरी संगीत किया गया है वह तो एलोरा से भी अधिक सुंदर बन पड़ा है।इन मूर्तियों में पार्वती के आत्म समर्पण की भावना तथा महादेव की सप्रेम स्वीकार करने की भावना दोनों ही भावनाओं की बड़ी ही सफल और मूर्तिकार की दक्षता भी अभिव्यक्ति है। जीते जागते हिलती सिंह पर सवार एक नारी आकृति है जिसकी 8 भुजाएं हैं।
Bharhut.
I am out of the Shung period, 100 mails from Allahabad are located in the east south. This place is very important in terms of sculpture. The name of the buddhist stupa comes after Sanchi. In 18 a.m., General Cunningham had a large sunshine around which wonderful sculptures were adorned in piles of stones.
We have different subjects in the statues of Bharhut. About 40 idols are going to belong to Mercury and about 6 idols are marking historical scenes related to Buddha's life. The milk list in women is particularly noteworthy, while going for the vision of Mercury, Khosla also had a view of the chariot of Prasanjit and the other on the elephant, the king of Magadha, Azadenemy. In addition, the target is a number of sculptures of Chinese animals and different types of trees.These idols seem to be quite correct and the naturalness has been done very closely. Their beauty and originality are particularly noteworthy. In the Jataka story, the elephant enters the womb and the Jataka scenes are created in such a way that no one can laugh without laughing, featuring scenes in which monkeys are shown. In one scene, a group of monkeys are being taken to an elephant playing banjo, in another, a man's tooth is being uprooted from a large heavy sandse that the elephant is pulling.
In all these idols, we see a lot of similarity to the style of the sculpture of Sanchi. But in India also, there is a lack of Buddha statue. The sculptures of Bharhut are of a flat doll and it would be more appropriate to say the raised images cut on the stone like the idols of Sanchi. At the same time, their personal features are also found in large quantities of folk art in the art of these idols. They do not have a clean cleaning of ashoka carpet pillars and the archway of Sanchi. The folk art of Bharhut is a scholar in almost all idols.
भरहुत।
शुंग काल में निर्मित बाहर हूं इलाहाबाद से 100 मेल पूरब दक्षिण में स्थित है। मूर्ति कला की दृष्टि से यह स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। सांची के पश्चात इसी बौद्ध स्तूप का नाम आता है।18 सो 73 ईस्वी में जनरल कनिंघम को यहां पर एक बड़ा बहुत हस धूप मिला था जिसके चारों ओर पत्थरों के ढेर में अद्भुत मूर्तियां सुशोभित है।
भरहुत की मूर्तियों में हमें भिन्न-भिन्न विषयों का समावेश मिलता है।लगभग 40 मूर्तियों तो बुध जातकों से संबंध रखने वाली है और लगभग 6 मूर्तियों में बुद्ध के जीवन से संबंधित ऐतिहासिक दृश्यों का अंकन है।स्त्रियों में दूध लिस्ट विशेष उल्लेखनीय है एक तो बुध के दर्शन के लिए जाते हुए खोसला भी प्रसनजीत के रथ का दृश्य और दूसरा उसी हेतु हाथी पर जाते हुए मगध के राजा आजादशत्रु का दृश्य।इसके अतिरिक्त लक्ष्य चीनियों की पशुओं की तथा भिन्न भिन्न प्रकार की वृक्षों की अनेक मूर्तियां मिली है।यह मूर्तियां बिल्कुल सही प्रतीत होती है और स्वाभाविकता का निर्वाह तो बड़ी ही बारीकी से किया गया है। उनकी सुंदरता और मौलिकता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जातक कथा में हाथी के रूप गर्भ में प्रवेश तथा उस जातक दृश्य इस ढंग से बनाए गए हैं कि उनमें देखकर कोई भी व्यक्ति हंसी बिना नहीं रह सकता विशेषता हुए दृश्य जिनमें बंदरों की लीलाएं दिखाई गई है।एक दृश्यों में बंदरों का एक समूह बाजा बजाते हुए एक हाथी को लिए जा रहा है दूसरे में एक मनुष्य का दांत एक बड़े भारी संडासे से उखाड़ आ जा रहा है जिसको हाथी खींच रहा है।
इन सब मूर्तियों में हमें सांची की मूर्ति कला की शैली की बहुत कुछ समानता दिखाई देती है। परंतु भारत में भी बुद्ध की मूर्ति का अभाव है। भरहुत की मूर्तियां चपटे डॉल की है इन्हें भी सांची की मूर्तियों के समान पत्थर पर काटे गए उभरे हुए चित्र कहना अधिक उपयुक्त होगा। साथ ही इनकी निजी विशेषताएं भी है इन मूर्तियों की कला में लोक कला का समावेश अधिक मात्रा में पाया जाता है। इनमें अशोक कालीन स्तंभों एवं सांची के तोरण का साफ सुथरा पर नहीं है। भरहुत की लोक कला शुगकालीन प्रायः सभी मूर्तियों में विद्वान है।
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