Khajuraho & Mahabalipuram art

Khajuraho 

Khajuraho art

Khajuraho is 40 kilometres from Chattarpur in central India. These temples were built by chandel kings. The temples of Khajuraho are considered to be the 10th century during the period of Vidyadhar and Kirtivarman. The temple here is famous for its new way. There are 30 temples located here. The maximum height of the temples is 101 feet. It is not because of the famous vastness of temples but because of art.The small artistic peaks of the temples have become higher respectively and have finally taken the form of a peak. The main peak is the quadrennial series. Khajuraho temples have a special place in the history of architectural art.
The Kandaria Mahadev temple-khajuraho style is the best creation of kandaria 

Mahadev temple. 


Built in the 10th century, the temple is 109 feet × 60 feet and 116 feet above the ground. The temple plans to have a study, mahamandapa, interval sanctum and Padkina path. The highest is the grand peak of the womb. The lower part of the pillars has attractive and kamable female sculptures inscribed in different postures of dance. In addition, some strange creatures are also depicted. The inner part of the temple is not visible due to darkness.In addition to the inner area and balcony, the dome of this temple is also a multiplicity of ornamentation in that chamber.
  The outer wall of the temples has statues of many deities, angels, worshippers, vidyadhars, musicians, dancers and officers. The extraordinary, saline-me idol with a sense of joy and total self-dedication is devoted to a variety of emotions.The Gemini pair is very close in a deep hug. The dev statue within the temple symbolizes salvation and the obscene sculptures outside are symbols of the world of mercy. A magnificent bond, that is, a man free from mercy, goes to spirituality and achieves his ultimate goal, which is the ultimate culmination of the idol craft.
Khajuraho art
Khajuraho art

Vishwanath Temple. 


The investiture system of Vishwanath Temple and Nari idols is fundamental. There is shivling in the womb. In his entrance, there is a statue of Shiva on the river. On the right side, Dhamma and Vishnu are inscribed with their vehicles. The stone section, one after the other in the construction of the roof, is systematically planted so that its large circles have become smaller respectively. At the main gate of the womb, there was a great propagation of Vaishnava Dharma during the reign of Brahma Chandela, a quadrilateral statue of Lord Vishnu standing in this temple.

खजुराहो।


 मध्य भारत के छतरपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर खजुराहो है। चंदेल राजाओं ने इन मंदिरों को बनवाया था।विद्याधर तथा कीर्तिवर्मन के काल में खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 10 वीं शताब्दी माना जाता है। यहां का मंदिर अपने नए ढंग से शिकरों के लिए प्रसिद्ध है। यहां 30 मंदिर अवस्थित है। मंदिरों की अधिकतम ऊंचाई 101 फुट है। मंदिरों के प्रसिद्ध विशालता के कारण नहीं अपितु कला के कारण है।मंदिरों के छोटे-बड़े कलात्मक शिखर क्रमशः ऊंचे होते चले गए हैं और अंत में एक शिखर का रूप ले लिए हैं। मुख्य शिखर के चतुर्दिक की श्रृंखला है। वास्तु कला के इतिहास में खजुराहो के मंदिरों का विशेष स्थान है।

कंदरिया महादेव मंदिर-


खजुराहो शैली की सर्वोत्कृष्ट रचना कंदरिया महादेव मंदिर है। 10 वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर 109 फुट×60 फुट तथा धरातल से 116 फुट ऊंचा है।इस मंदिर में अध्दमंडप ,महामंडप ,अंतराल गर्भगृह तथा पदक्षिना पथ की योजना है। सबसे ऊंचा गर्भ गृह का भव्य शिखर है।स्तंभों के निचले भाग में आकर्षक एवं कमनीय नारी मूर्तियां है जो नृत्य के विभिन्न मुद्राओं में अंकित है। इसके अतिरिक्त कुछ विचित्र जीव जंतुओं का भी चित्रण है। मंदिर के भीतरी भाग अंधकार पूर्ण होने के कारण इसकी सुंदरता दृष्टिगोचर नही होता है।भीतरी क्षेत्र तथा छज्जे के अतिरिक्त इस मंदिर का गुंबद वह कक्ष में भी अलंकरण की बहुलता  है।
  मंदिरों के बाह्य दीवार में अनेक देवी देवता, देवदूत, उपासक, विद्याधर ,संगीतज्ञ, नर्तकी तथा अफसरों की मूर्तियां है।मदमस्त हर्ष विलास तथा संपूर्ण आत्म समर्पण की भावना से युक्त हुए असाधारण ,लवण्यमई मूर्ति विविध भावनाओं में समर्पित है।मिथुन युग्म परस्पर प्रगाढ़ आलिंगन में तन्मय है।मंदिर के भीतर की देव प्रतिमा मोक्ष का प्रतीक है तथा बाहर की अश्लील मूर्तियां दया रूपी संसार इक बंधन का प्रतीक है ।भव्य बंधन अर्थात दया से मुक्त मनुष्य है अध्यात्म की ओर जाकर अपने चरम लक्ष्य की प्राप्ति करता है यही यहां की मूर्ति शिल्प के चरम परिणति है।

विश्वनाथ मंदिर। 


विश्वनाथ मंदिर के एवं नारी मूर्तियों की अलंकरण पद्धति मौलिक है। गर्भ गृह में शिवलिंग है। उसकी प्रवेश द्वार में नदी पर आरूढ़ शिव की प्रतिमा है। इसकी दाहिनी ओर धम्मा तथा विष्णु अपने वाहनों के साथ अंकित हैं।छत के निर्माण में एक के बाद दूसरा प्रस्तर खंड इस प्रकार व्यवस्थित ढंग से लगाया गया है कि इसके बड़े वृत्त क्रमशः छोटे होते गए हैं। गर्भ ग्रह के मुख्य द्वार पर ब्रह्मा चंदेल के राज्य काल में वैष्णव धर्म का बड़ा प्रचार था इस मंदिर में खड़े हुए भगवान विष्णु की चतुर्भुजी प्रतिमा है।

Mahabalipuram. 


The 12 hundred year old Pallava-style temple was built by Pallava Raja Narasimha Varman. Mahabalipuram is also called Mamlapuram. It is a huge temple located on the beach, about 55 km south of Madras. This temple is like a chariot in seeing that many temples and sculptures have been carved out of the art rocks of South India. So it is called the Rath Temple, the five chariot-shaped temples are built in remembrance of Pandavas and Drupti. The Dharamraj Rath Temple is the most famous of them.

  There are shapes on the walls of the temple, with mythological scenes and the nature of the Deva. These temples have statues of Shiva, Parvati, Vishnu, etc. In one, Vishnu has been made, in fact, both Anantnag and Vishnu slept on stones as if bhim body stones were brought on one. Thus, Vishnu has slept on the stone of which he himself has been scraped. The wonderful way of these works has been coordinated by infinity and self-re-ness.The wonderful way of these works is to coordinate the infinite and self-reconcereing, the soft place of the organ, the Suresh organ of the Lord who slept on the infinite shisha, and all of them often dance to the shapes, indicating that the stone sus or the surface of the stone is deliberately rough and thus the scheme is full of an artistic coming. The background of all these emerged shapes also looks as soft as the beat metal. The edge around him is deliberately made of rough rocks without being chopped.

  All this scraped artwork is called out of the rock by magic. Even after the infinite magic of the Rath temples Craftsperson, the mountain in each of the temples is a tremendously loud scholar. Art and nature have imperfect links. A place has also become a statue of the king, the chariot is a huge rock in the north of the temples and the deities and fascinating sculptures are formed. Mahabalipuram has been the most astonishing statue of bhagiratha related to Gangavtar. This scene I am engaged in Bhagirath penance.This scene has become very affected. In one idol, Arjun has been shown to do penance and bless the beyadh rupsiv. There was also a huge wall around the temples. The sea storms and the waves have dropped it.

महाबलीपुरम।

12 सौ वर्ष पुरानी पल्लव शैली का यह मंदिर पल्लव राजा नरसिंह वर्मन ने इस नगर को बनवाया था। महाबलीपुरम को मामलपुरम भी कहते हैं। यह मद्रास से लगभग 55 किलोमीटर दक्षिण, समुद्र तट पर स्थित विशाल मंदिर है। दक्षिण भारत की यह कला चट्टानों को काटकर अनेक मंदिरों और मूर्तियां बनाई गई है देखने में यह मंदिर रथ के समान है।अतः इसे रथ मंदिर कहते हैं यहां रथ के आकार के पांच मंदिर पांडवों तथा द्रोपती की याद में बने हैं। धर्मराज रथ मंदिर इनमें सबसे प्रसिद्ध है।
  मंदिर की दीवारों पर उभरी हुई आकृतियां है, जिसमें पौराणिक दृश्य एवं देवों के स्वरूप अंकित है। इन मंदिरों में जगह-जगह पर शिव, पार्वती, विष्णु आदि की मूर्तियां हैं। एक में  विष्णु बनाए गए हैं वास्तव में यह अनंतनाग और विष्णु दोनों पत्थर पर सोए हुए मानो भीम काय पत्थर एक पर एक लादे गए हैं। इस प्रकार विष्णु जिसमें से उनको खुद को कुरेदा  गया है उस पत्थर पर सोए हुए हैं। इन कृतियों के अद्भुत रीति से अनंत का और खुदरेपन का समन्वय किया गया है।इन कृतियों के अद्भुत रीति से अनंत का और खुदरेपन का समन्वय किया है अंग का मुलायम स्थान अनंत शीश पर सोए हुए प्रभु की सुरेश अंग भंगी अन्य कौन आकृतियों का प्रायः नृत्य लास्य इन सब से यह संकेत मिलता है कि पाषाण सस या की सतह जानबूझकर खुरदरी रहने दी है और इस प्रकार यह योजना एक कलात्मक आ से परिपूर्ण करती है।उभरी हुई इन सभी आकृतियों की पृष्ठभूमि भी हराया धातु जैसी ही मुलायम दिखाई देती है।उसके चारों ओर का किनारा जानबूझकर बिना कटी खुरदरी चट्टानों का बनाया गया है।
  यह सारी कुरेद कर बनाई गई कलाकृति मानो चट्टान में से ही जादू के द्वारा बाहर बुलाई गई है। रथ मंदिरों शिल्पी के अनंत जादू के बाद भी मंदिर के प्रत्येक कन में पहाड़ एक जबरदस्त प्रबलता से विद्वान है। कला और प्रकृति की अपूर्ण संबंध है ।एक जगह राजा की भी मूर्ति बनी है रथ मंदिरों के उत्तर कुछ दूर एक विशाल चट्टान पर देवी देवताओं एवं आकर्षक मूर्तियां बनी है। महाबलिपुरम की सबसे आश्चर्यजनक मूर्ति हुआ है जिसमें गंगावतरण से संबंधित भागीरथ की दृश्य अंकित किया गया है। इस दृश्य मैं भागीरथ तपस्या में लगे हुए हैं।यह दृश्य अत्यंत प्रभावित बना है। एक मूर्ति में अर्जुन को तपस्या करते तथा ब्याध रूपसिव को आशीर्वाद देते हुए दिखाए गए हैं। मंदिरों के चारों ओर का भी विशाल दीवार थी। समुद्री तूफान और लहरों के थपेड़ों ने उसे गिरा दिया है।

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