Konark Temple.
Orissa is a state in India with the capital Bhubaneswar and Kunal's crafts on the beach near Bhubaneswar are the best. The sun is the temple of God in Konark. This temple is broken in view. The original temple is broken. This temple score was built by Maharaj Narasimha Dev 1245-56. This sun is the temple shaped by the chariot of God, its pride and is combined by Jagmohan 24 Chakco, which is drawn by 7 horses.It also uses thick iron links with large stones. The craftsman of Konark has created subtle arts at the speed of sugar and hammer. The temple is surrounded by a 5 ft 4 inch thick stone wall and the Konark temple has four gates. In which two gates have been completely exhausted, which are not even chinh and the remaining two are the remains of the gate.In the north gate, an elephant has tied a person with his voice and dropped it into the ground, it seems that he is trying to crush the person with his feet. The helpless person is trying to shock the elephant for the sword in his hand for his self-defence. In this stone statue, sculptors have succeeded in showing the poignant and natural motion of various organs of the elephant, feet, eyes, ears, neck, asking and hurting human beings, etc.
The south gate is the gate of war. In which two giants have the ease of war in their backs. The San Cavalry have fallen into the fighting-fighting land. Many war wars are sheltered under the belly of tears in the country. The third war is being captured by Ashoka Rein or ready to protect its master by planting his soul. Thus, the spirit of protecting the soul of yourself and the master is reflected in the horse's mouth. The main currency of the fallen cavalry is the prana protection. This giant elephant is a world famous statue of a horse.
The throne of the aircraft and the sanctum is complete with various karu work. The north western and south part of the aircraft has three sculptures of budding sun, medium sun and chaotic sun. The sun's labour-long body is very low-graced in the chaotic village. In addition, the theatrical temple is very breathtaking of the female sculptures that have been dug on the offerings in front of the Dev temple. A woman who plays a vidanga whose hands and fingers are shown to be sounding from mridanga right now.
The most beautiful scenic Navagraha statue in konark's courtyard is on the same stone. The diameter of each cycle of Surat is 9 feet 8 inches, 88, on which a kind of sculptures have been taken by themselves, the beauty sculptures of Kunal were taken over by the king of Khurda, some foreigners have also taken. Kunal's sculptures are of three kinds-religious, social and bhogal.
In the first type of idols, dev idols avatar or mythological anecdotes are the sculptures of social customs in the other, such as pulling of bullocks and cooking, drawing rope by two parties, returning from war of soldiers, etc., in the third type, there are statues of the gestures. A statue is waiting for a young woman of about 3 years waiting for someone to see the tree.
The baby elephant is trying to drink mother's milk behind a female mother is angry and blissful and steeped in the motherly affection of her offspring. The poignant expression of this type of animal is in the form of a stone statue whose eyes, ears, etc., are displaying different expressions. Konark has different forms of human beings. At the same time, other animals are carved on different types of picture letters of animal birds. Letters of colour have been treated as animal birds that put four moons in its naturalness.
The idols of Konark know that in that era, the dhanic people wore a chapkan. Pajama and paint were also prevalent. The woman wore a kind of ornaments in the nose, work and waist. People considered Pagadia on the head. People wore shoes and climbed up the sedan and used to eat in the thalies. It had the playing of drums, gong, Bansi Vina, etc. Thus, konark temple is a symbol of the entire utkaliculture. This temple may be the eighth wonder of the world.
कोणार्क मंदिर।
उड़ीसा भारत का एक राज्य है जिसकी राजधानी भुवनेश्वर है तथा भुवनेश्वर के पास समुद्र तट पर कुणाल की शिल्प कला सबसे श्रेष्ठ है। कोणार्क में सूर्य भगवान का मंदिर है। देखने में यह मंदिर टूटा हुआ है। मूल मंदिर टूट गया है। यह मंदिर स्कोर 1245 -56 मैं महाराज नरसिंह देव ने बनवाया था।यह सूर्य भगवान के रथ के आकार का मंदिर है इसके अभिमान तथा जगमोहन 24 चक्को द्वारा संयुक्त है जो 7 अश्व द्वारा खींचे जाते हैं।इसमें बड़े-बड़े पत्थरों के साथ लोहे की मोटी कड़ियां भी इस्तेमाल की गई है। कोणार्क की शिल्पी की चीनी और हथौड़ी की गति से सूक्ष्म कलाओं की सृष्टि हुई है।यह मंदिर 5 फुट 4 इंच मोटे पत्थर की दीवार से घिरा हुआ है कोणार्क मंदिर में चार द्वार हैं। जिनमें दो द्वार बिल्कुल खत्म हो गए हैं जिनके चीन्ह भी नहीं है और शेष दो द्वार के अवशेष हैं।उत्तर के द्वार में एक हाथी ने अपने सुर से एक व्यक्ति को बांधकर जमीन में गिरा दिया है ऐसा लगता है कि अपने पैरों से उस व्यक्ति को कुचलने की कोशिश में है। वह असहाय व्यक्ति अपनी आत्मरक्षा के लिए हाथ में तलवार लिए हाथी को आघात करने के प्रयास में है।इस पत्थर की बनी मूर्ति में हाथी की विभिन्न अंग पैर, आंख, कान, गर्दन, पूछ तथा आहत मनुष्य इत्यादि की मार्मिक तथा स्वाभाविक गति को दिखाने में मूर्तिकार सफल हुए हैं।
दक्षिण का द्वार युद्ध का द्वार है। जिसमें दो विशाल जिसकी पीठ में युद्ध का सहज है।सैन घुड़सवार लड़ते-लड़ते भूमि में गिर गया है। अनेक युद्ध युद्ध देश में आंसू के पेट के नीचे आश्रय लिए हुए हैं। तीसरा युद्ध अशोका लगाम पकड़कर चल रहा है अथवा अपने प्राणों की बाजी लगाकर अपने स्वामी की रक्षा के लिए तत्पर है ।इस प्रकार अपने और स्वामी की प्राण रक्षा का भाव घोड़े के मुंह से परिलक्षित हो रहा है। गिरे हुए घुड़सवार की मुख्य मुद्रा प्राण रक्षा की है। इस विशालकाय हाथी का घोड़े का विश्व प्रसिद्ध मूर्ति है।
विमान तथा गर्भगृह का सिंहासन विविध कारू कार्य से पूर्ण है।विमान के उत्तर पश्चिमी तथा दक्षिण भाग में नवोदित सूरज, मध्यम सूरज और अस्त सूरज की तीन मूर्तियां हैं। शिथिल अश्व पर अरुढ़ है अस्त गांव में सूरज के श्रम कालांतर शरीर की शोभा अत्यंत कमनीय है।इसके अतिरिक्त नाट्य मंदिर यहां देव मंदिर के सामने वाले प्रसाद पर खोदी गई बाजा बजाने वाली नारी मूर्तियां की बड़ी लुभावनी है।विदंग बजाती हुई एक औरत जिसके हाथ और अंगुलियों को ऐसा दिखाया गया है कि ठीक अब मृदंग से आवाज निकलेगी।
कोणार्क के आंगन में जो सबसे सुंदर दर्शनीय नवग्रह की मूर्ति है वह एक ही पत्थर पर है।सूरत की प्रत्येक चक्र का व्यास 9 फुट 8 इंच है इसमें 88 आ रहे हैं जिन पर तरह-तरह की मूर्तियां खुद ही गई है कुणाल की सुंदरता मूर्तियां खुर्दा के राजा द्वारा पूरी ले जाई गई थी कुछ विदेशियों ने भी ले ली है। कुणाल की मूर्तियां तीन तरह की है -धार्मिक, सामाजिक तथा भोगात्मक।
प्रथम प्रकार की मूर्तियों में देव मूर्तियां अवतार अथवा पौराणिक उपाख्यानों की मूर्ति दूसरे में सामाजिक रीति रिवाज की मूर्ति जैसे बैलों की गाड़ी खींचना और खाना पकाना, दो दलों द्वारा रस्सी खींचा जाना ,सैनिकों का युद्ध से लौटना इत्यादि है तीसरे प्रकार में श्रृंगारी संबंधी हाव-भाव की मूर्तियां है।एक मूर्ति प्रतीक्षा की है जिसमें करीब 3 साल की एक युवती पेड़ की डाल के सहारे एकटक देखती हुई किसी की प्रतीक्षा कर रही है।
एक हथिनी के पीछे शिशु हाथी माता का दूध पीना चाह रहा है मां क्रोधित तथा आनंदित होकर अपने संतान की ममता में डूबी हुई है।इस प्रकार की पशु की मार्मिक भाव पत्थरों की मूर्ति के रूप में है जिसकी आंख ,कान इत्यादि प्रत्येक अंग उस विभिन्न भाव प्रदर्शित हो रहे हैं। कोणार्क में मनुष्यों की विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं । साथ ही अन्य जीव जंतु पशु पक्षी के विभिन्न प्रकार की चित्र पत्रों पर खुदे हुए हैं। पशु पक्षी के रूप रंग के पत्रों का व्यवहार हुआ है जो उसकी स्वभाविकता में चार चांद लगाता है।
कोणार्क की मूर्तियों से मालूम पड़ता है कि उस जमाने में धनिक लोग चपकन पहनते थे।पायजामा और पेंट का भी प्रचलन था। स्त्री नाक, काम तथा कमर में तरह-तरह के गहने पहना करती थी। लोग सर पर पगड़िया मानते थे। लोग जूते पहनते थे पालकी ऊपर चढ़ते थे और थालियों में खाते थे। इसमें ढोल, घंटा, बंसी विणा इत्यादि का वादन होता था। इस तरह कोणार्क मंदिर संपूर्ण उत्कलीय संस्कृति का प्रतीक है ।यह मंदिर विश्व का आठवां आश्चर्य हो सकता है।
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