Main Painting Style

Pal style. 

Pal Kala

The first ruler of the Pal dynasty was Raja Gopal's successor Raja Dharam Pal and Raja Dev Pal. The picture style that was affected by the simulation of Ajanta in the preservation of sail kings is called pal style. It also affected the eastern regions of Tibet, Nepal, Bihar and Bengal.

  Art plays an important role in expressing one's culture. This art was specially developed by the rulers of the Pal dynasty in Bengal and Bihar from the 9th century to the 12th century, which sail art style by Dharam Pal and Dev Pal. In Bihar, at that time, Nalanda Vikramshila and Udantpuri, especially pal Kala, were developed. The pal rulers developed architecture, painting and sculpture that were influenced by Buddhism.

Black basalt stone was used for these idols. The sculptures were specially made from the mould. The front of the beads was created. The painting was celebrated on mukta palm letters. And the idols were polished. The main three part of sail art is sculpture architecture and painting. In sculpture, the level of sculpture and sculpture is prevalent.

Sculpture. 

In the eighth to 9th century, the Sail dynasty took the heights of the fame of sculpture. The sculptures are influenced by the Mahayana and Vajrayana branch of Buddhism. There are sculptures made of black stone and octagmetallic. The sculptures were made from Sanchi and related to the life of Buddha which was related to birth, home sacrifice, dharma chakra enforcement, etc. The façade of idols was represented and nalanda resident Dhiman and Bitthpal were the prominent painters.

Architecture. 

The Indian architecture of sculpture had also achieved its climax. Nalanda, Vikramshila, Buddhist Vihar, etc., are the major testimony to architecture. The palaces had many chambers and pops, and the birds were used. Dry Eid was used to build temples. And the temple and stupa were specially constructed.

Painting. 

Painting the sail dynasty itself was a complete art of sail carpet painting evuses the mainly painted manuscripts and murals and the later effect of buddhism is observed in which attractive colours are used and paintings are done on mukta palm letters. The paintings depict a lot of stories and the red blue white and some of its supporting colours were also used as primary colours. The main example of painting of the pal dynasty is Ashstrika etc.

          The original miniature Pothi picture is inscribed in Devanagari script in palm letter. According to the tradition of Ajanta, the shapes of Pal Saini are gentle and in different postures. The life of the quaint Lord Buddha belongs to the character. In proportion to the mouth, the nose was out of the high length 2 villages, the pictures of Pal Saini used red blue white black paper and brinjal, etc., made from blending those colours. The pal art style itself is excellent and thorough which makes the audience attractive.

पाल शैली। 

पाल वंश का प्रथम शासक राजगोपाल के उत्तराधिकारी राजा धर्मपाल एवं राजा देव पाल हुए। पाल राजाओं के संरक्षण में अजंता के अनुकरण पर जिस चित्र शैली का प्रभाव हुआ उसे पाल शैली कहते हैं। इसका प्रभाव तिब्बत, नेपाल, बिहार एवं बंगाल के पूर्वी क्षेत्रों में भी हुआ।

  कला किसी की संस्कृति को व्यक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कला 9 वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक बंगाल और बिहार में पाल वंश के शासकों द्वारा जो धर्मपाल और देव पाल द्वारा पाल कला शैली विशेष रूप से विकसित किया गया।बिहार में उस समय नालंदा विक्रमशिला और उदंतपुरी में खासकर पाल कला का विकास हुआ। पाल शासकों ने स्थापत्य कला, चित्रकला और मूर्तिकला का विकास किया जो बौद्ध धर्म से प्रभावित रहे।

 इन मूर्तियों के लिए काले बेसाल्ट पत्थर का प्रयोग किया गया था। मूर्तियां खासकर सांचे से बनाई जाती थी। मोतियों का अग्रभाग को रचा जाता था। चित्रकला मुक्ता ताड़ पत्र पर मनाया जाता था। और मूर्तियों पर पॉलिश की जाती थी।पाल कला का मुख्य तीन भाग मूर्तिकला स्थापत्य कला तथा चित्रकला है। मूर्ति कला में स्तर मूर्ति कला तथा का मूर्ति कला प्रचलित है।

मूर्ति कला।

आठवीं से 9वीं शताब्दी में पाल वंश ने मूर्ति कला की प्रसिद्धि की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। मूर्तियां बौद्ध धर्म की महायान और वज्रयान शाखा से प्रभावित है। काले पत्थर और अष्टधातु की बनी मूर्तियां हैं।मूर्तियां सांची से डालकर बनाई जाती थी तथा बुद्ध के जीवन से संबंधित होती थी जो जन्म, गृहत्याग, धर्म चक्र प्रवर्तन आदि से संबंधित था। मूर्तियों का अग्रभाग दर्शाया जाता था तथा नालंदा निवासी धीमान और बिट्ठपाल प्रमुख चित्रकार थे।

स्थापत्य कला।

मूर्ति कला की भारतीय स्थापत्य कला भी अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त कर चुका था।नालंदा, विक्रमशिला, बौद्ध विहार इत्यादि स्थापत्य कला की प्रमुख प्रमाण है। महलों में कई कक्ष तथा चबूतरे होते थे इसके अलावा चिड़ियों का प्रयोग किया जाता था। सूखी ईद का प्रयोग मंदिर बनाने में किया जाता था। तथा मंदिर और स्तूप का निर्माण खासकर किया गया था।

चित्रकला। 

पाल वंश में चित्रकला अपने आप में एक वरी पूर्ण कला थी पाल कालीन चित्रकला में मुख्यता चित्रित पांडुलिपियों और भित्ति चित्रों का उदाहरण मिलते हैं तथा बौद्ध धर्म के तंत्र बाद का प्रभाव देखा जाता है इसमें आकर्षक रंगों का प्रयोग दर्शनीय है तथा चित्रांकन मुक्ता ताड़ पत्र पर किया जाता है।चित्रों में बहुत कथाओं को दर्शाया गया है तथा प्राथमिक रंगों के रूप में लाल नीला सफेद तथा इसके कुछ सहायक रंगों का भी प्रयोग किया गया जाता था। पाल वंश के चित्रकला का मुख्य उदाहरण अष्टस्त्रीका इत्यादि है।

          मूल लघु पोथी चित्र ताड़ पत्र में देवनागरी लिपि में अंकित है।अजंता की परंपरा अनुसार पाल सैनी की आकृतियां कोमल एवं विभिन्न मुद्राओं में है।विचित्र भगवान बुद्ध के जीवन चरित्र से संबंध है ।मुख के अनुपात में नाक अधिक लंबाई 2 गांव से बाहर निकली हुई होती थी पाल सैनी के चित्रों में लाल नीला सफेद काला कागज तथा उन रंगों के सम्मिश्रण से बनाए गए बैगन इत्यादि रंगों का प्रयोग किया गया है। पाल कला शैली अपने आप में उत्कृष्ट और संपूर्ण है जो दर्शकों का आकर्षक बनाता है।

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1 comments:

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John David
admin
March 16, 2022 at 6:24 PM ×

Nice Post, Its inspire every one like tanjore paintings

Congrats bro John David you got PERTAMAX...! hehehehe...
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